पितृसत्तात्मक भारतीय समाज में भी अब महिलाएँ आगे बढ़ रही हैं! स्कूलों में लड़कियों का नामांकन बढ़ रहा है। यही पितृसत्तात्मक समाज लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देता दिख रहा है। आज ही एएसईआर की रिपोर्ट आई है जिसमें पता चलता है कि लड़कियों का ड्रॉप आउट यानी बीच में स्कूल छोड़ने वाली लड़कियों की संख्या भी कम हो रही है। तो सवाल है कि क्या पितृसत्तात्मक भारतीय समाज अब बदल गया है? क्या महिलाओं को पुरुषों के बराबर सम्मान-हक़ मिलने लगा है? क्या महिलाओं के सामने लिंग भेद जैसी विषमता अब नहीं रही?
महिलाओं के सामने जब ऐसी बेड़ियाँ होंगी तो आगे कैसे बढ़ेंगी?
- विविध
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- 19 Jan, 2023
क्या जो समाज बेटियों की शिक्षा पर जोर दे रहा है, उन्हें आगे बढ़ा रहा है, वही अनजाने में उन्हें नीचे की ओर भी खींच रहा है? शहरों में कामकाजी एकल महिलाओं के सामने आख़िर क़दम-क़दम पर मुश्किलें क्यों आ रही हैं?

इन सवालों का जवाब पाने के लिए देश के गाँवों में महिलाओं की स्थिति जानने जाने की ज़रूरत नहीं है जहाँ अपेक्षाकृत कम पढ़े-लिखे लोग होते हैं, जहाँ परंपराएँ ज़्यादा रूढ़ हैं, जहाँ आधुनिकता की हवा अभी भी नहीं पहुँच पाई है और पहुँची भी है तो इतनी कि उसका असर न के बराबर दिखाई देता है। इन सवालों के जवाब तो दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई, कोलकाता जैसे मेट्रो शहरों के गगनचुंबी इमारतों में पढ़ी-लिखी महिलाओं के साथ होने वाले व्यवहार से भी मिल जाता है। और इससे बेहतर क्या हो कि हालात वहीं से मापे जाएँ जिसे आम तौर पर सबसे बेहतर स्थिति मानी जाती है।