देश की आज़ादी कई धाराओं, संगठन और व्यक्तियों की अथक कोशिशों और कुर्बानियों का नतीजा है। ग़ुलाम भारत में महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलन के अलावा एक क्रांतिकारी धारा भी थी, जिससे जुड़े क्रांतिकारियों को लगता था कि अंग्रेज़ हुक्मरानों के आगे हाथ जोड़कर, गिड़गिड़ाने और सविनय अवज्ञा जैसे आंदोलनों से देश को आज़ादी नहीं मिलने वाली, इसके लिए उन्हें लंबा संघर्ष करना होगा और ज़रूरत के मुताबिक़ हर मुमकिन कुर्बानी भी देनी होगी। क्रांतिवीर गेंदालाल दीक्षित ऐसे ही एक जांबाज क्रांतिकारी थे, जिन्होंने अपने साहसिक कारनामों से उस वक़्त की अंग्रेज़ी हुकूमत को हिलाकर रख दिया था।
एक भूला बिसरा क्रांतिकारी जिसके नाम से अंग्रेज़ भी काँपते थे!
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- 21 Dec, 2020

21 दिसम्बर अमर शहीद गेंदालाल दीक्षित की पुण्यतिथि और साल 2020 उनकी शहादत का सौवाँ साल है।