loader
रुझान / नतीजे चुनाव 2024

झारखंड 81 / 81

इंडिया गठबंधन
57
एनडीए
23
अन्य
1

महाराष्ट्र 288 / 288

महायुति
226
एमवीए
53
अन्य
9

चुनाव में दिग्गज

चंपाई सोरेन
बीजेपी - सरायकेला

आगे

पूर्णिमा दास
बीजेपी - जमशेदपुर पूर्व

आगे

डॉ. वैदिक: रहते दिल्ली में थे पर दिल मालवा में बसा रहता था!

डॉ. वेदप्रताप वैदिक की अनुपस्थिति को 14 मार्च को एक साल पूरा हो गया। महानगर में तब्दील हो चुका उनका इंदौर शहर अपने जिन शानदार पुरखों और आत्मीयजनों को लगातार याद करता रहता है डॉ. वैदिक भी उनमें शामिल हो गए। डॉ. वैदिक अपनी सारी लड़ाइयां दिल्ली में लड़ते रहते थे पर उनका दिल मालवा में बसा रहता था। वे कहते नहीं थकते थे कि उन्हें इंदौर और मालवा जैसा सुख दिल्ली में नहीं मिलता।

इंदौर को देश के नागरिक और आप्रवासी भारतीय अलग-अलग शक्लों में जानते हैं पर मालवा का यह खूबसूरत शहर अपनी धुरी पर एक-सा ही है। दुनिया के लोगों के लिए इंदौर की नई पहचान भारत के सबसे स्वच्छ शहर के तौर पर कर दी गई है। इंदौर को कुछ ज़्यादा क़रीब से जानने का दावा करने वालों के लिए शहर पोहा, जलेबी, कचोरी और स्वादिष्ट नमकीन-मिष्ठान का ठिकाना है। प्रधानमंत्री भी इंदौर के ख़ान-पान की तारीफ़ करते नहीं थकते। हक़ीक़त का इंदौर ऐसा नहीं है। इंदौर के लोग कुछ अलग कारणों से भी अपने शहर से मोहब्बत करते हैं। इन कारणों में एक उन विभूतियों की शहर की रगों में उपस्थिति थी जिनमें डॉ. वैदिक भी शामिल थे।

ताज़ा ख़बरें

जैसा कि हर शहर के साथ होता है गुल्लक धीरे-धीरे ख़ाली होती जाती है क्योंकि उसमें नए खरे सिक्के जमा होना बंद हो जाते हैं। इंदौर की गुल्लक भी धीरे-धीरे ख़ाली हो रही है। डॉ. वैदिक ख़ाली होती गुल्लक से लगातार निकलते रहने वाली आवाज़ थे। वे एक ऐसे सिक्के थे जो दुनिया के चाहे जिस भी कोने में रहें, खनक इंदौर की गुल्लक से सुनाई देती रहती थी। वह खनक अब चुप हो गई है।

डॉ. वैदिक को इंदौर में तलाश करना आसान काम है। उसके लिए वाहन से उतर कर पैदल ही आरएनटी मार्ग के नाम से प्रसिद्ध लंबी-सी सड़क के उस एक छोटे से टुकड़े पर बसी किसी ज़माने की चाल या कच्चे-पक्के मकानों की क़तार के सामने खड़े होना पड़ेगा जिसकी पहचान समीरमलजी के बाड़े के रूप में हुआ करती थी। फिर उस ज़माने की स्मृतियों के जंगल में चहल-कदमी करना होगा जब डॉ. वैदिक वहाँ रहते थे।

दस-बारह फुट चौड़े और रेल के डिब्बे जैसे सत्तर-अस्सी फुट लंबे बिना फ़र्श वाले और टीन के पतरों से ढके एक जैसे सारे घर। सड़क पर खड़े होकर देखें तो घरों के पिछवाड़ों तक का दर्शन। सभी घरों का पिछला हिस्सा एक बड़े से सार्वजनिक क्षेत्र में प्रकट होता हुआ। उस क्षेत्र के एक कोने में आधी ऊँचाई के टीन के दरवाजों वाले भारतीय पद्धति के कॉमन शौचालय—एक तरफ़ पुरुषों और दूसरी ओर महिलाओं के लिए। खुले क्षेत्र के बीच में पीने का पानी बर्तनों में भर कर घरों में कर ले जाने के लिए दो कॉमन नल। एक पीपल का वृक्ष, एक कुआँ भी।
विविध से और

कुछ और जोड़ना चाहें तो : गोबर से लीपे घरों की कच्ची दीवारों को हरदम लांघती भीतर की दुख-सुख सारी बातचीत और लकड़ी-कोयले से सुलगते चूल्हों पर बनती सब्ज़ियों की ख़ुशबू। कुछ घरों में बिजली के एक-दो बल्ब बाक़ी में मिट्टी के तेल से घरों को रोशन करतीं चिमनियां और लालटेनें। बरसात के दिनों में टीन के पतरों की छतों के छेदों से रिसता हुआ पानी। बाड़े से कोई सौ-दो सौ गज़ की दूरी पर वह जगह जहां एम एफ़ हुसैन अपने प्रारंभिक दिनों में सिनेमा के पोस्टर पेंट करते थे। डेढ़-दो फ़र्लांग की दूरी पर कैप्टेन मुश्ताक़ अली का मकान।

कहानी का सार यह है कि तब एक छोटे से शहर और मध्यमवर्गीय बनिया व्यापारी परिवार से निकल सरकारी स्कूल और क्रिश्चियन कॉलेज से पढ़ाई समाप्त कर दिल्ली पहुँचने वाले डॉ. वैदिक ने बाराखंभा रोड स्थित सप्रू हाउस के अंग्रेज़ी आतंक वाले बौद्धिक संसार को हिन्दी में चुनौती दी और उनकी उस साहसपूर्ण लड़ाई में डॉक्टर लोहिया सहित उस ज़माने की तमाम राजनीतिक हस्तियों ने संसद में साथ दिया।

ख़ास ख़बरें

असली डॉ. वैदिक वे नहीं थे जो दिल्ली में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के लाउंज, उसके लंच-डिनर हॉल, सार्वजनिक समारोहों या राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय गोष्ठियों में बोलते नज़र आते थे। अपने असामयिक निधन के पूर्व के कुछ सालों में तो वे अपने बाहरी स्वरूपों से अलग मन के एकांत में ज़्यादा विचरण करने लगे थे। बातचीत में कभी-कभी पीड़ा व्यक्त कर देते थे कि कुछ करना चाहिए, कोई बड़ा आंदोलन खड़ा करना चाहिए। पूछते रहते थे: क्या किया जा सकता है? उन्हें शायद भीतर से कोई दर्द सताता था कि उनके द्वारा जो किया जा सकता था वे कर नहीं पा रहे हैं! डॉ. वैदिक शायद अपनी इसी पीड़ा को बर्दाश्त नहीं कर पाए।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
श्रवण गर्ग
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विविध से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें