हज़ारों करोड़ की धनराशि के चुनावी बॉन्डों की ख़रीदी, जिसका कि हाल ही में खुलासा हुआ है, के पीछे का असली सच क्या है? क्या सच सिर्फ़ यही है कि विपक्षी दलों की तुलना में भाजपा को कई गुना ज़्यादा चंदा प्राप्त हुआ? यह सच अधूरा है! पूरे सच के लिए इस बात की तह में जाना होगा कि भाजपा को मदद करने वाली ताक़तें कौन सी हैं? वे कंपनियाँ और उनके मलिक कौन हैं जिनके निहित स्वार्थ वर्तमान सत्ता और व्यवस्था को बनाए रखने में हैं? वे लोग कौन हैं जो सत्तारूढ़ दल में शामिल हो रहे हैं और उन्हें चुनावी टिकट मिल रहे हैं? ‘निष्पक्ष’ चुनावों के ज़रिए सरकार अगर सत्ता से बाहर हो जाती है तो इन शक्तियों के साम्राज्यवाद का क्या होगा?
क्या मोदी और विपक्ष की तैयारियों में दस साल का फ़र्क़ है?
- विचार
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- 26 Mar, 2024

विपक्षी एकता और इतनी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद लोकसभा चुनाव के परिणामों को लेकर भाजपा अगर इतनी आश्वस्त ‘दिखाई’ पड़ती है तो उसके पीछे आख़िर बड़ा कारण क्या है?
प्रधानमंत्री जब कहते हैं कि वे भारत को दुनिया की तीसरी बड़ी आर्थिक ताक़त बनाना चाहते हैं तो उसके पीछे की हक़ीक़त को समझना होगा! सरकारें कभी आर्थिक ताक़त नहीं बनतीं! समूचा देश बनता है। जिस देश में अस्सी करोड़ से ज़्यादा नागरिक मुफ़्त के अनाज पर ज़िंदा हों वे राष्ट्र को आर्थिक ताक़त नहीं बना सकते। वे करोड़ों पढ़े-लिखे बेरोज़गार जो नौकरियों की तलाश में अपनी उम्र खर्च कर रहे हैं वे भी मुल्क के आर्थिक रूप से शक्तिशाली बनने में मदद नहीं कर सकते।