हज़ारों करोड़ की धनराशि के चुनावी बॉन्डों की ख़रीदी, जिसका कि हाल ही में खुलासा हुआ है, के पीछे का असली सच क्या है? क्या सच सिर्फ़ यही है कि विपक्षी दलों की तुलना में भाजपा को कई गुना ज़्यादा चंदा प्राप्त हुआ? यह सच अधूरा है! पूरे सच के लिए इस बात की तह में जाना होगा कि भाजपा को मदद करने वाली ताक़तें कौन सी हैं? वे कंपनियाँ और उनके मलिक कौन हैं जिनके निहित स्वार्थ वर्तमान सत्ता और व्यवस्था को बनाए रखने में हैं? वे लोग कौन हैं जो सत्तारूढ़ दल में शामिल हो रहे हैं और उन्हें चुनावी टिकट मिल रहे हैं? ‘निष्पक्ष’ चुनावों के ज़रिए सरकार अगर सत्ता से बाहर हो जाती है तो इन शक्तियों के साम्राज्यवाद का क्या होगा?