प्रकृति ने जल और जंगल के रूप में मनुष्य को दो ऐसे अनुपम उपहार दिए हैं, जिनके सहारे कई दुनिया में कई सभ्यताएँ विकसित हुई हैं, लेकिन मनुष्य की खुदगर्जी के चलते इन दोनों ही उपहारों का तेज़ी से क्षय हो रहा है। पानी के संकट को स्पष्ट तौर पर दुनियाभर में महसूस किया जा रहा है और कई विशेषज्ञ चेतावनी दे चुके हैं कि अगला विश्व युद्ध अगर हुआ तो वह पानी को लेकर ही होगा। जिस तेजी से पानी का संकट विकराल रूप लेता जा रहा है, कमोबेश उसी तेजी से जंगलों का दायरा भी सिकुड़ता जा रहा है।
भारत सहित दुनियाभर में सिकुड़ते जंगल, संकट में सभ्यता
- विविध
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- 8 Jun, 2021
वर्षों से हो रही लगातार अवैध कटाई ने जहाँ मानवीय जीवन को प्रभावित किया है, वहीं असंतुलित मौसम चक्र को भी जन्म दिया है। वनों की अंधाधुंध कटाई होने के कारण देश के वन क्षेत्र का सिकुड़ना पर्यावरण की दृष्टि से बेहद चिंताजनक है।

जब मनुष्य ने जंगलों को काटकर बस्तियाँ बसाई थीं और खेती शुरू की थी, तो वह सभ्यता के विस्तार की शुरुआत थी। लेकिन विकास के नाम पर मनुष्य की खुदगर्जी के चलते जंगलों की कटाई का सिलसिला मुसलसल जारी रहने से अब लग रहा है कि अगर जंगल नहीं बचे तो हमारी सभ्यता का वजूद ही ख़तरे में पड़ जाएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि दुनियाभर में जंगल अब बहुत तेजी से ख़त्म हो रहे हैं। पूरी दुनिया के जंगलों का दसवाँ भाग तो पिछले 20 साल में ही ख़त्म हो गया है। यह गिरावट लगभग 9.6 फ़ीसदी के आस-पास है।