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अवधेश कुमार के निर्देशन में हुए नाटक द डॉल का एक दृश्य

भारत में लोकप्रिय हो रहे क्रोएशियाई नाटककार मिरो गावरान

रंगमंच और नाटक-  ऐसी कला विधाएं है जो किसी एक देश या समाज तक केंद्रित नहीं रहती हैं। एक नाटककार किसी एक देश की भाषा में लिखता है लेकिन वही नाटक दूसरे देश की भाषा या भाषाओं में भी खेलने पर लोकप्रिय हो जाता है। इसीलिए अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशो  में भी ग्रीक या रूसी नाटक होते हैं। पीटर ब्रुक ने भी महाभारत पर आधारित नाटक किया था। भारत में भी शेक्सपीयर, मोलिटर, ब्रेख्त जैसे नाटककार लोकप्रिय रहे हैं और उनके लिखे नाटक हिंदी सहित दूसरी भारतीय भाषाओं में भी लगातार होते रहे हैं। पर ये भी मानना होगा कि भारत में जो विदेशी नाटककार लोकप्रिय रहे है उनमें से ज्यादातर ग्रीक, अंग्रेजी, फ्रांसीसी या जर्मनी जैसे देशों के वे नाटककार हैं जो काफी पहले के जमाने के थे।
हाल हाल में लिखे गए विदेशी नाटक भारत में या हिंदी में बहुत कम होते हैं, हालांकि अपवाद भी हैं। इसके पीछे एक बड़ा कारण कॉपीराइट कानून हैं जिसके तहत भारतीय निर्देशक हाल के दिनों में उभरे विदेशी नाटककारों से उनके नाटकों की प्रस्तुति के लिए  या तो उनकी अनुमति नहीं लेते या ले भी नहीं पाते। इसकी भी कई वजहों हैं जिनके बारे मे अलग से चर्चा करने की जरूरत है। फिलहाल यहां ये सारी भूमिका इसलिए कि क्रोएशियाई नाटककार मिरो गावरान  के नाटकों की चर्चा के मसले को समझा जा सके। 
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दूसरी भारतीय भाषाओं के बारे मे तो नहीं कह सकता लेकिन हिंदी में मिरो गावरान के नाटक लभभग पिछले पांच बरसों से होने शुरू हो गए हैं। उनका एक नाटक `द डॉल’ (हिंदी में इसे ‘गुड़िया’ भी कह सकते हैं) 2019 में बिहार के बेगुसराय में खेला गया। निर्देशक थे अवधेश कुमार। हिदी में ये मिरो गावरान के किसी नाटक की पहली प्रस्तुति थी। फिर इसी साल यही नाटक दिल्ली में त्रिवेणी नाट्य समारोह में वरिष्ठ रंगकर्मी सुरेंद्र शर्मा के निर्देशन भी हुआ। और अब यही नाटक हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में होने जा रहा है जिसके निर्देशक हैं केदार ठाकुर। गावरान का एक और नाटक `एक एक्टर की मौत’ दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में खेला गया था, जिसके निर्देशक थे सौरभ श्रीवास्तव। सौरभ श्रीवास्तव और उनकी अभिनेत्री पत्नी सुष्मिता श्रीवास्तव ने उसमें अभिनय भी किया।
सवाल उठेगा आखिर मिरो गावरान के नाटकों में इस दिलचस्पी के पीछे क्या वजहें हैं। एक मुख्य वजह तो रंगकर्मी, अभिनेता और रूपांतरकार सौरभ श्रीवास्तव ही हैं जिन्होंने कॉपाराइट अधिकार लेकर मिरो गावरान के नाटकों का हिंदी रूपांतरण शुरू  किया। अवधेश राय, सुरेंद्र शर्मा और केदार ठाकुर ने भी उनसे ही अनुमति लेकर ये नाटक खेले या खेल रहे हैं।
Croatian playwright Miro Gavran becoming popular in India - Satya Hindi
नाटक द डॉल का दृश्य
पर एक दूसरा और सवाल ये भी उठेगा कि क्या है ऐसा जो भारतीय रंगकर्मियों को मिरो गावरान की ओर आकर्षित कर रहा है? हालांकि इसे पूरी तरह समझने को लिए मिरो गावरान के सभी नाटकों का अध्ययन करना होगा। वो एक अलग मुद्दा है। मगर जिस तरह से भारतीय रंगकर्मियों की दिलचस्पी गावरान के नाटकों में हो रही है उससे तो लगता है कि वो दिन दूर नहीं जब उनके  नाटक हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाओ मे अनुदित हो जाएंगे और ब्रेख्त या चेखव जैसे नाटककारों की तरह भारत में लोकप्रिय होंगे।  
गावरान के नाटकों की परिधि बहुत विस्तृत है। उनके कुछ  नाटकों में समकालीन समय के ऐसे विषय हैं जो पचास या सौ साल के पहले के नाटककारों मे नहीं हो सकते हैं। जैसे साइबार तकनीक के विकास के कारण हमारा समय़ पचास- साठ साल पहले की तुलना में काफी बदल गया है। रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इटेलीजेंस  (कृत्रिम बुद्धि) ने वैश्विक स्तर पर आम से लेकर विशिष्ट जनों के जीवन में ऐसा हस्तक्षेप किया है कि लोगों के समझ में नहीं आ रहा है कि आगे क्या  होगा या  क्या हो रहा है? ऐसे में कई आशंकाएं भी हैं, भय भी। पर साथ ही  कुछ ठोस परिस्थितियां भी हैं जिनका हमारी जटिल भावनाओं से एक पेचीदा रिश्ता बन रहा है।
`द डॉल’ नाटक का संबंध भी ऐसे ही एक मामले से है। इस नाटक में अपनी  शादी से निराश एक युवा व्यक्ति है जो एक कंपनी में ऑर्डर देकर एक ऐसी महिला रोबोट को किराए पर लेता है जिसके साथ वो प्रेम और सेक्स कर सके, दिल बहला सके। पर जैसे जैसे संबंध आगे बढ़ता है दोनो के बीच समस्याएं बढ़ती जाती है क्योंकि उस व्यक्ति का औरतों के प्रति व्यवहार ही अलोकतांत्रिक है। अति संक्षेप मे कहें तो पुरुष की पुरानी मानसिकता और स्त्री में आ रही स्वतंत्र चेतना के बीच टकराहट शुरू हो जाती है इसीलिए उस पुरुष का अपनी पत्नी से रिश्ता खराब होता है। ये नाटक हास्य से भरपूर है। पिछले दिनों आई हिंदी फिल्म `तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया’, जिसमे  शाहिद कपूर और कृति सैनन प्रमुख कलाकार थे, में कुछ कुछ इसी तरह का विषय था हालांकि फिल्म का अंत अलग दिशा में चला गया था । जब रोबोटिक्स और कृत्रिम बुद्धि का अस्तित्व  था नहीं था तो इस तरह के नाटक नहीं लिखे जा सकते थे या `तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया’ जैसी फिल्में नहीं बन सकती थीं।
 `एक एक्टर नाटक की मौत’ में दो वरिष्ठ अभिनेता है। एक पुरुष और दूसरी स्त्री। इस नाटक में प्रेम, संबंध, सेलिब्रिटी लोगों के बीच का अहं और साथ साथ उम्र बढ़ने के साथ प्रौढ़ और वृद्ध लोगों के जीवन में बढ़ रहा अकेलापन जैसी समस्याएं हैं जो जिसमें हंसी मजाक भी भरपूर हैं। बेशक नाटक की मूल नाटक की पृष्ठभूमि विदेशी है लेकिन उसमें एक ऐसी सार्वजनीनता है जिसके कारण उसका हिंदी रूपांतऱण भी सहज लगा।
मिरो गावरान ने कई नाटक लिखे हैं और वे एक ऐसे नाटककार हैं जिनके नाटककों के समारोह कई जगहों पर होते हैं। क्रोएशिया एक वक्त मे युगोस्लाविया का हिस्सा था जो अब विघटित हो गया है। पर यहां एक समद्ध रंग परंपरा है।
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गावरान एक एक नाटक है जिसमें विश्वप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक  फ्रायड के यहां इलाज कराने आता है हिटलर। जिस कालखंड की परिधि मे ये नाटक लिखा गया है उस समय हिटलर जर्मनी मे सत्ता में नहीं आया था। यानी उसकी युवावस्था का मनोविज्ञान है इसमें। एक अन्य  नाटक दो रूसी लेखकों चेखव और टॉल्सटाय के बीच बातचीत है। गावरान ने कथा साहित्य की भी रचना की है। लेकिन वे हिंदी में शायद अनुदित नहीं हैं। यानी गावरान ऐतिहासिक चरित्रों को थोड़ा अलग ढंग से जांचते – परखते हैं। नाटकों की दुनिया में  गावरान की कीर्ति कई देशों में  तेजी से फैल रही है जिसमें एक भारत भी हैं।  
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रवीन्द्र त्रिपाठी
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