पंजाब में सीएम और राज्यपाल के बीच चल रहे विवाद पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस सुनवाई में पंजाब सरकार द्वारा बुलाए गये विधानसभा सत्र को राज्यपाल द्वारा अवैध बताने और सदन द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी नहीं देने के मामले में सुनवाई की गई।
सुनवाई के दौरान सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ सिंह ने राज्यापाल के वकील से पूछा कि आप किस शक्ति का प्रयोग करते हुए कह रहे हैं कि स्पीकर द्वारा बुलाया गया सत्र अवैध तरीके से बुलाया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पंजाब में जो हो रहा है, हम उससे खुश नहीं हैं, यह गंभीर चिंता का विषय है।
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के राज्यपाल द्वारा विधानसभा से पारित विधेयकों को रोके जाने पर नाखुशी जाहिर करते हुए कहा कि, "आप आग से खेल रहे हैं. हमारा देश स्थापित परंपराओं पर चल रहा है और उनका पालन किया जाना चाहिए। माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के राज्यपाल पर यह सख्त टिप्पणी कर अन्य राज्यों के राज्यपालों को भी संदेश दिया है कि वे अपनी सीमाओं से आगे न बढ़े।
सुप्रीम कोर्ट में पंजाब सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि मौजूदा राज्यपाल के रहते विधानसभा का सत्र बुलाना असंभव सा है।
सुनवाई के दौरान सीजेआई ने पंजाब के राज्यपाल के वकील से पूछा कि अगर विधानसभा का कोई सत्र अवैध घोषित हो भी जाता है, तो सदन द्वारा पास किया गया विधेयक कैसे गैरकानूनी हो जायेगा? सुप्रीम ने कहा, हमें बताएं कि राज्यपाल की यह कहने की शक्ति क्या है?
सुनवाई के दौरान सामने आया कि मुख्य विवाद विधानसभा के सत्रों को लेकर है। राज्यपाल मान रहे हैं कि जो सत्र वैध नहीं है उसमें पारित विधेयकों को मंजूरी देना उचित नहीं है।
सात विधेयकों को राज्यपाल ने रोक रखा है
इसलिए वह सात विधेयकों को रोके हुए हैं। वहीं पंजाब सरकार का कहना है कि विधानसभा से पारित विधेयकों को रोकना गलत है। सुनवाई के दौरान सीजेआई ने पंजाब के राज्यपाल के वकील से कई तीखे सवाल पूछे। उन्होंने कहा कि ऐसा कर क्या हम संसदीय लोकतंत्र बने रहेंगे? कृपया विधिवत निर्वाचित विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों की दिशा न भटकाएं। यह गंभीर चिंता का विषय है।
सीजेआई के सवालों पर पंजाब के राज्यपाल के वकील ने कहा कि मुझे एक हफ्ते का समय दीजिए और मैं सब कुछ रिकॉर्ड पर रख दूंगा। अगर विधानसभा का सत्र वैध है तो राज्यपाल को कोई दिक्कत नहीं है।
सुनावाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि अनिश्चित काल के लिए स्थगन स्पीकर के परामर्श से किया जाना चाहिए। विधेयकों को इस तरह से रोकने का राज्यपाल को कोई अधिकार नहीं है।
राज्यपाल की यहां कोई भूमिका नहीं है। सरकार राज्यपाल को सलाह देती है। वहीं राज्यपाल के वकील ने कहा कि उन्हें सत्रावसान के लिए राज्यपाल के पास आना चाहिए था।
वे कभी नहीं आये। यदि अदालत यह घोषित करती है कि सत्र वैध है, तो राज्यपाल आगे बढ़ेंगे। इस पर सीजेआई ने कहा कि आपका तर्क यह है कि सत्र अमान्य होने के कारण विधेयकों को मंजूरी नहीं दी जा सकती।
अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि सीएम और राज्यपाल के बीच पत्राचार के माध्यम से बात होती है। वे पत्र लिख रहे हैं लेकिन विधेयकों को पास नहीं कर रहे हैं। वह पंजाब की विधानसभा से दो बार विधेयक को पारित करने के लिए कहेंगे और तब वह सहमति देंगे - यही वह कह रहे हैं। यह कैसे हो सकता?
सोमवार को भी सुप्रीम कोर्ट ने जताई थी नाराजगी
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस बात को लेकर सख्त नाराजगी जताई थी कि राज्य सरकारों को विधानसभा से पारित विधेयकों को राज्यपाल से पास कराने के लिए बार-बार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि राज्यपालों को यह समझना चाहिए कि वो चुनी हुई अथॉरिटीज नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि राज्य सरकारों के कोर्ट जाने के बाद ही राज्यपाल विधेयक पर कार्रवाई क्यों करते हैं? इस स्थिति को रोकना होगा।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली यह खंडपीठ पंजाब सरकार की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित पर आरोप है कि वे विधानसभा से पारित 7 विधेयकों को पास नहीं कर रहे हैं
लॉ से जुड़ी खबरों की वेबसाइट लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक सोमवार को सुनवाई के दौरान, भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट की इस पीठ को सूचित किया था कि पंजाब के राज्यपाल ने विधेयकों पर "उचित निर्णय" लिया है और शुक्रवार तक विवरण देने का वादा किया है। तुषार मेहता पंजाब के राज्यपाल की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे। उसके बाद अब शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई हुई थी।
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