भारत को आज़ादी मिलने के समय दुनिया में ‘समाजवाद’ का बोलबाला था। यह शब्द एक उम्मीद की तरह था जिसने ख़ासतौर पर उपिनिवेशों में मुक्ति की आकांक्षा को नये पंख दे दिये थे। सोवियत क्रांति पूरे ग्लोब पर बिजली की तरह चमक रही थी और समता का विचार मनुष्यता की पूर्व-शर्त बन गया था। नेहरू से लेकर भगत सिंह जैसे तमाम नायक समाजवाद के ही विभिन्न रंगों का प्रतीक बनकर युवा दिलों में धड़क रहे थे। बहरहाल, भारत ने सोवियत यूनियन या चीन के ‘समाजवादी’ रास्ते और एकाधिकारवादी शासन से परहेज़ करते हुए लोकतंत्र के उपकरण के ज़रिए समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व पर आधारित समाज बनाने का कठिन संकल्प लिया। इसलिए भारत की कहानी किसी एक ऋतु में होने वाली क्रांति नहीं, वर्ष भर चलने वाली संक्रांतियों के सिलसिले से बुनी नज़र आती है। यह समाजवाद का भारतीय संस्करण है।