पंजाब के किसानों ने जब कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन की शुरुआत की तो तब इसकी गूंज राज्य से बाहर नहीं थी। लेकिन 26 नवंबर को जब किसान पंजाब से चले और हरियाणा की बीजेपी सरकार ने उन्हें रोकने की पुरजोर कोशिश की, उसके बाद हरियाणा के साथ ही तमाम राज्यों किसान, मजदूर संगठन इस आंदोलन के साथ जुड़ गए।
किसान आंदोलन ने पंजाब की सियासत पर भी गहरा असर किया है। इसलिए शिरोमणि अकाली दल, कांग्रेस, बीजेपी और आम आदमी पार्टी ख़ुद को किसानों का हितैषी दिखाने की जोरदार कोशिश कर रहे हैं।
पंजाब की सियासत में किसानों का ख़ासा असर है। किसानों के इन क़ानूनों के पुरजोर विरोध में उतरने के कारण ही शिरोमणि अकाली दल को एनडीए से नाता तोड़ना पड़ा और मोदी सरकार में शामिल मंत्री हरसिमरत कौर बादल को इस्तीफ़ा भी देना पड़ा।
किसानों का आंदोलन जब से शुरू हुआ है, अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी जबरदस्त सक्रिय हैं। केजरीवाल सरकार ने दिल्ली के बॉर्डर्स पर किसानों के लिए तमाम ज़रूरी इंतजाम किए हैं और आम आदमी पार्टी के नेताओं ने होर्डिंग्स भी लगाए हैं जिनमें लिखा है- किसानों का दिल्ली में स्वागत है। केजरीवाल ख़ुद सिंघू बॉर्डर पर जाकर इंतजामों की समीक्षा कर चुके हैं।
अब केजरीवाल किसानों के समर्थन में सोमवार को एक दिन के अनशन पर रहे। किसान भी सोमवार को अनशन पर रहे। केजरीवाल ने एएनआई के जरिये जारी संदेश में बीजेपी और मोदी सरकार पर हमला बोला है।
खालिस्तानी बताने पर बोला हमला
बीजेपी के आला नेताओं और मोदी सरकार के मंत्रियों की ओर किसानों के आंदोलन में शामिल लोगों को देशद्रोही-खालिस्तानी बताए जाने को लेकर केजरीवाल ने कहा है कि क्या किसानों के साथ बैठे हज़ारों पूर्व सैनिक, देश के लिए मेडल लाने वाले खिलाड़ी, डॉक्टर्स, पंजाबी गायक क्या देशद्रोही हैं?
केजरीवाल ने बीजेपी नेताओं को चेताया है कि वे देश के किसानों को देशद्रोही कहने की हिम्मत न करें। उन्होंने कहा कि देश का मध्यम-उच्च वर्ग भी कह रहा है कि ये क़ानून बेहद ख़तरनाक हैं और सरकार को इन क़ानूनों को तुरंत वापस लेना चाहिए।
पंजाब में अब तक मुख्य सियासी लड़ाई कांग्रेस और अकाली दल के बीच ही होती थी लेकिन बीते कुछ सालों में राज्य की सियासत में आम आदमी पार्टी भी मजबूत ताक़त बनकर उभरी है।
2017 में पूरी ताक़त से लड़ा चुनाव
अमरिंदर-केजरीवाल की हुई थी भिड़ंत
पंजाब में किसान वोटों की अहमियत को देखते हुए ही किसान आंदोलन के मुद्दे पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भिड़ चुके हैं। कुछ दिन पहले ही पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जोरदार बहस हुई थी।
किसानों के वोटों की अहमियत को देखते हुए ही सरदार प्रकाश सिंह बादल और सुखदेव सिंह ढींढसा ने कुछ दिन पहले अपने पद्म सम्मान लौटा दिए थे।
कांग्रेस-आप में होगी लड़ाई
पंजाब के विधानसभा चुनाव में महज सवा साल का वक़्त बचा है। बीजेपी और अकाली दल अलग-अलग हो चुके हैं। 10 साल तक अकाली दल की बैशाखी के जरिये सरकार में रही बीजेपी मोदी लहर के दम पर पंजाब में अकेले चुनाव लड़कर सरकार बनाने के दावे कर रही थी। लेकिन हालात ऐसे बदले कि पार्टी को वहां पिछले चुनाव में अकाली दल के साथ गठबंधन में लड़ते हुए जो 3 सीटें मिली थीं, वे भी मिलनी मुश्किल हैं।
दूसरी ओर अकाली दल के सामने भी अपना वजूद बचाने की चुनौती है क्योंकि पंजाब ही उसका आधार राज्य है। पिछले चुनाव में उसे सिर्फ़ 15 सीट मिली थीं। ऐसे में मुख्य लड़ाई कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में ही मानी जा रही है।
केजरीवाल सबसे ज़्यादा मुखर
ऐसे वक़्त में जब बीजेपी लगातार चुनावी जीत हासिल कर रही है और उसे चुनौती देना बेहद मुश्किल दिख रहा था, किसानों के आंदोलन ने यह उम्मीद जगाई है कि मोदी सरकार को चुनौती दी जा सकती है। किसानों के इस आंदोलन ने लुंज-पुंज और लगभग हताश हो चुके विपक्ष को सियासत में सत्ता के ख़िलाफ़ संघर्ष करने का संदेश दिया है।
किसानों के आंदोलन को 24 विपक्षी दलों का समर्थन हासिल है। लेकिन इनमें से केजरीवाल सबसे ज़्यादा मुखर दिख रहे हैं। हालांकि राहुल गांधी ने पंजाब में ट्रैक्टर यात्रा का नेतृत्व किया था और विपक्षी नेताओं के साथ राष्ट्रपति से भी मिले थे। आम आदमी पार्टी का संगठन कांग्रेस की तुलना में काफी छोटा है लेकिन ऐसे में भी पार्टी और उसके मुखिया केजरीवाल किसान आंदोलन को पूरा समर्थन देकर फ्रंटफुट पर खेल रहे हैं और बाक़ी विपक्षी नेताओं से आगे निकलते दिख रहे हैं।
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