अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने सोमवार को ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ़्रेन्स से इस्तीफ़ा दे दिया है। गिलानी ने इस्तीफ़े का एलान करने वाले अपने ख़त में लिखा है कि हुर्रियत के घटक दल जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म होने के बाद लोगों का नेतृत्व करने में असफल रहे हैं। गिलानी ने यह भी कहा है कि उनकी विचारधारा में कोई अंतर नहीं आया है।
गिलानी ने कहा है कि ताज़ा हालात में पूरे मामले को देखने के बाद ही उन्होंने ख़ुद को हुर्रियत कॉन्फ़्रेन्स से अलग करने का फ़ैसला किया है। उन्होंने कहा कि भले ही उनकी तबीयत बिगड़ रही हो लेकिन आज़ादी का उनका इरादा मजबूत है और वे अंतिम सांस तक लड़ते रहेंगे।
जीवन भर अलगाववाद का झंडा बुलंद करने वाले गिलानी ने हुर्रियत से इस्तीफ़ा क्यों दिया, इसका विश्लेषण करना ज़रूरी है। अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री रहते हुए कहा था कि कश्मीर की समस्या का समाधान जम्हूरियत, कश्मीरियत और इंसानियत के दायरे में ही निकलेगा। वाजपेयी के इस बयान का कश्मीर में स्वागत हुआ था।
बीजेपी ने पीडीपी संग बनाई सरकार
लेकिन मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में ही बीजेपी के कई नेता कहते थे कि उनकी सरकार जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाकर ही रहेगी। मोदी सरकार अपने पहले कार्यकाल में इस दिशा में कुछ ख़ास नहीं कर सकी। इस बीच उसने पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के साथ मिलकर 40 महीने तक सरकार भी चलाई और बाद में ख़ुद ही सरकार से समर्थन वापस ले लिया। पीडीपी के साथ सरकार बनाने पर उस पर यह आरोप लग रहा था कि वह अलगाववादियों के प्रति नरम रूख अपना रही है क्योंकि पीडीपी धारा 370 की कट्टर समर्थक थी।
दूसरी बार सत्ता में आते ही बीजेपी ने राष्ट्रवाद के अपने एजेंडे पर काम शुरू किया। इसमें सबसे पहला काम जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाना था। जनसंघ के दौर से ही वह अपने इस वादे को दोहराते और घोषणापत्र में शामिल करती रही थी।
जम्मू-कश्मीर से धारा 370 ख़त्म होने और राज्य के दो हिस्सों में विभाजित होने के बाद से ही हालात तेज़ी से बदले हैं।
अनुच्छेद 370 हटाने के बाद मोदी सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्रियों फ़ारूक़ अब्दुल्ला, उमर, महबूबा मुफ़्ती सहित सैकड़ों नेताओं को नज़रबंद कर दिया और बहुत से लोगों को जेल में डाल दिया। पूरे कश्मीर में लंबे समय तक लॉकडाउन रहा और आज भी हालात बहुत बेहतर नहीं हैं।
मोदी सरकार ने हुर्रियत के नेताओं से बातचीत पर जोर न देकर उनके यहाँ छापे डलवाए, उन्हें गिरफ़्तार किया गया और नज़रबंद कर दिया गया। उनके बैंक खातों की पड़ताल की गयी और यह आरोप लगाया कि उन्हें पाकिस्तान से पैसे आते हैं और वे इस पैसे का इस्तेमाल कश्मीर को देश से अलग करने की साज़िश में कर रहे हैं।
दूसरी बार सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने अलगाववादी नेताओं को दी गई सुरक्षा वापस ले ली थी। सरकार का कहना था कि यह सुरक्षा ऐसे लोगों को दी गई थी जो देश विरोधी बातें करते थे।
पुलवामा हमले के बाद हुर्रियत नेताओं पर टेरर फ़ंडिंग को लेकर एनआईए और ईडी का शिकंजा कस दिया गया था।
मोदी सरकार लगातार दावा करती रही है कि अनुच्छेद 370 ख़त्म होने के बाद कश्मीर में आतंकवाद समाप्त हो गया है। लेकिन आतंकवादी आए दिन नापाक हरक़तों को अंजाम देते रहते हैं। इन दिनों सुरक्षा बलों और पुलिस ने कश्मीर में दहशतगर्दों के ख़िलाफ़ जोरदार अभियान चलाया हुआ है।
अनुच्छेद 370 ख़त्म होने के बाद यह कहा जा रहा है कि अलगाववादी नेताओं की जनता पर पकड़ कमजोर होती जा रही है और उन्हें भी यह लगता है कि हुर्रियत की आवाज़ को कश्मीर में पहले जैसा समर्थन नहीं मिल रहा है। इसके अलावा केंद्र सरकार ने उन पर पूरी तरह शिकंजा कस दिया है और तमाम एजेंसियों की उन पर निगाह है। ऐसे में गिलानी ने काफी सोच-समझकर ही यह फ़ैसला लिया है।
अपनी राय बतायें