‘चीन के साथ उसकी हरक़तों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी चाहिए थी, लाल आंखें करके चीन को समझाना चाहिए था, उसके बजाय हिंदुस्तान के विदेश मंत्री ने चीन में जाकर बयान दिया कि बीजिंग इतना बढ़िया शहर है कि मुझे यहां रहने का मन कर जाता है, डूब मरो-डूब मरो, मेरे देश की सरकार चलाने वालों डूब मरो, आपको शर्म आनी चाहिए।’
ये बयान जिस समय एक रैली में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और बीजेपी की ओर से 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने दिया था तो देश के लोगों को लगा था कि वह सत्ता में आने के बाद चीन को टाइट कर देंगे।
प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग को साबरमती में झूला भी झुलाया और चेन्नई के महाबलीपुरम में उनका भव्य स्वागत भी किया। मोदी खुद भी कई बार चीन गए। लेकिन बावजूद इसके चीन ने अपना भारत विरोधी रवैया नहीं छोड़ा।
भारत के ख़िलाफ़ खड़ा दिखा चीन
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आतंकवादी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के सरगना मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने का मामला हो, न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में भारत की सदस्यता का मसला हो या फिर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का। इन सभी मसलों पर चीन हर मंच पर भारत के ख़िलाफ़ खड़ा दिखा। उसने खुलकर यह भी कहा कि वह चट्टान की तरह पाकिस्तान के साथ खड़ा है। यानी, उसने कहीं से भी किसी भी मुद्दे पर हमारी नाराज़गी की कोई परवाह नहीं की।
इसके अलावा 2017 में चीनी सैनिक भूटान के डोकलाम इलाक़े में घुस आए थे और भारतीय सैन्य चौकियों के लिये ख़तरा पैदा कर रहे थे। तब दो महीने से ज़्यादा वक्त तक भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच विवाद हुआ था और धक्का-मुक्की की ख़बरें भी आईं थीं। लेकिन तब भी भारत ऐसा कोई सबक ड्रैगन को नहीं सिखा था कि वह आज गलवान घाटी में घुसने की हिमाकत करता।
चीन तब से ज़्यादा बौखला गया है जबसे भारत ने लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर केंद्र शासित प्रदेश बनाया है और अक्साई चिन को अपना हिस्सा बताया है।
स्थिति साफ करे सरकार
ड्रैगन पिछले ढाई महीने से गलवान घाटी में सैनिकों का जमावड़ा लगा चुका है और इस बात को ख़ुद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी स्वीकार कर चुके हैं। ख़बरों के मुताबिक़, ड्रैगन 60 किमी. अंदर तक आ चुका है। लेकिन भारत सरकार पर लगातार आरोप लग रहा है कि वह इस मामले में स्थिति साफ़ नहीं कर रही है। बताया जा रहा है कि वहां हालात बिलकुल भी सामान्य नहीं हैं।
मई के महीने में उत्तरी सिक्किम के नाकू ला सेक्टर में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई झड़प के बाद तमाम तरह की लेफ़्टिनेंट से लेकर मेजर जनरल स्तर तक की वार्ता हो चुकी है लेकिन चीन पीछे हटने का नाम नहीं ले रहा है। यहां अहम बात यह है कि चीन हमारे इलाक़े में घुसा है, हम उसके इलाक़े में नहीं गए हैं। उसे पीछे हटना चाहिए, न कि भारत को।
ड्रैगन दुनिया के कई मंचों पर भारत का विरोध कर रहा है और भारत की ज़मीन हड़पने पर आमादा है। ऐसे में भारत सरकार चीन को ऐसा माकूल जवाब क्यों नहीं देती, जिसके बारे में लंबे-चौड़े भाषण देकर पीएम मोदी प्रधानमंत्री बने थे।
रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि चीन दो क़दम आगे बढ़कर एक क़दम पीछे हटने की रणनीति पर काम करता है। यानी अब वह गलवान घाटी को खाली करने के मूड में नहीं दिखता और बहुत दबाव बना तो भी वह इस 60 किमी. में से 50 किमी. पर कब्जा जमा ही लेगा।
ऐसे में जब हम अपने एक कर्नल अफ़सर और दो जवानों को खो चुके हैं तो फिर देश मोदी जी से जवाब मांग रहा है कि वो वक्त आख़िर कब आएगा, जब आप चीन को लाल आंखें दिखाएंगे। 1975 के बाद यह पहली बार हुआ है, जब चीन के साथ सीमा विवाद में हमारे देश के सैनिकों को जान गंवानी पड़ी है।
लोग कह रहे हैं कि मोदी जी चीन को सिर्फ़ लाल आंखें ही मत दिखाइए, उससे हमारे सैनिकों की शहादत का बदला भी लीजिए, उसे ऐसा माकूल जवाब दीजिए कि वह फिर से ऐसी हिमाकत न कर सके। राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाकर लगातार दो चुनाव जीतने वाली बीजेपी से देश की जनता सैनिकों की शहादत का बदला लेने की मांग कर रही है।
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