19 जून को होने वाले राज्यसभा चुनाव से पहले कांग्रेस हलकान है। वह गुजरात, राजस्थान के अपने विधायकों को सुरक्षित करने के लिए पसीना बहा रही है। इस साल मार्च के महीने में वह 22 विधायकों के एकमुश्त इस्तीफ़े के बाद मध्य प्रदेश में अपनी सरकार गंवा चुकी है। इससे पहले वह कर्नाटक में भी सहयोगी दल जेडीएस के साथ चल रही अपनी सत्ता को विधायकों के इस्तीफ़े के कारण ही खो बैठी थी। कांग्रेस के मुताबिक़, इस सबके पीछे कारण बीजेपी का ‘ऑपरेशन लोटस’ है।
कांग्रेस का आरोप है कि लोकतंत्र की लगातार हत्या करना बीजेपी का चरित्र बन चुका है और वह ‘ऑपरेशन लोटस’ के जरिये उसकी राज्य सरकारों को अस्थिर करने के काम में जुटी है। लेकिन यहां सबसे अहम सवाल यह है कि क्या इस मामले में वह सिर्फ़ बीजेपी को दोष देकर ख़ुद पर उठ रहे सवालों से मुंह मोड़ सकती है?
कांग्रेस आलाकमान को राज्यों के नेतृत्व और वहां के विधायकों के लगातार संपर्क में रहना चाहिए था। और वह भी तब, जब कांग्रेस ख़ुद यह कहती है कि बीजेपी ने पिछले छह साल में उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्वोत्तर तक विपक्षी दलों के विधायकों को तोड़ने का काम किया है।
लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान हुई एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पश्चिम बंगाल में हुई एक चुनावी रैली में सार्वजनिक मंच से कह चुके हैं, ‘ममता दीदी, आपके 40 विधायक मेरे संपर्क में हैं’, ऐसे में भी कांग्रेस सोई क्यों रही?
ख़ैर, ताज़ा सूरत-ए-हाल ये है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा है कि उनकी सरकार को गिराने के लिए बीजेपी कांग्रेस विधायकों को करोड़ों-अरबों रुपये का ऑफ़र दे रही है। गहलोत ने कहा है कि सरकार गिराने का जो खेल मध्य प्रदेश में खेला गया, वही राजस्थान में भी खेला जा रहा है।
गुजरात में राज्यसभा चुनाव से पहले कई विधायक पाला बदल चुके हैं और वहां 2018 से ही विधायक लगातार पार्टी छोड़ रहे हैं। क्या कांग्रेस आलाकमान ने उन तक पहुंचने की कोशिश नहीं की। अगर की, तो आलाकमान असफल क्यों रहा?
कांग्रेस और विपक्षी दलों के विधायकों को तोड़े जाने के लिए चलाया जाने वाला ‘ऑपरेशन लोटस’ महाराष्ट्र, गोवा, अरुणाचल, उत्तराखंड और मणिपुर में भी आजमाया जा चुका है।
कांग्रेस प्रवक्ता संजय झा ने ‘इंडिया टुडे’ के साथ ताज़ा बातचीत में कहा, ‘कर्नाटक, मध्य प्रदेश और अब गुजरात का मामला नेताओं के बीच पार्टी के भविष्य के प्रति बढ़ रही असुरक्षा की भावना को दिखाता है और इस बारे में कोई भी ध्यान देने के लिए तैयार नहीं है।’
‘बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा’
ध्यान रखिएगा कि यह कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता का बयान है। लेकिन ऐसा बयान सिर्फ़ संजय झा ने ही नहीं दिया है। इससे पहले राष्ट्रीय प्रवक्ता और पूर्व सांसद संदीप दीक्षित पार्टी में नेतृत्व संकट को लेकर सवाल उठा चुके हैं। उन्होंने इस साल फरवरी में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर नया अध्यक्ष चुनने में नाकाम रहने का आरोप लगाया था। संदीप ने कहा था कि पार्टी के नेता इस बात से डरते हैं कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा।
थरूर ने किया था समर्थन
दीक्षित के इस बयान का पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने समर्थन किया था। थरूर ने कहा था कि जो बात संदीप दीक्षित ने खुलकर कही है, वही बात पूरे देश भर से पार्टी के नेता दबी-छुपी जबान में कह रहे हैं और इनमें वे लोग भी शामिल हैं जो पार्टी में जिम्मेदार पदों पर बैठे हैं। थरूर ने कांग्रेस कार्यसमिति से अपील की थी कि वह नेतृत्व का चुनाव कराए। इसके अलावा भी कई नेता धीमी आवाज़ में यह मसला उठा चुके हैं।
पिछले छह साल में पूर्व विदेश मंत्री एसएम कृष्णा से लेकर, चौधरी बीरेंद्र सिंह, अशोक तंवर, रीता बहुगुणा जोशी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जगदंबिका पाल, हेमंत बिस्वा शर्मा, एन. बीरेन सिंह, पेमा खांडू, राधा कृष्ण विखे पाटिल और सोनिया गांधी के सबसे क़रीबी कहे जाने वाले टॉम वडक्कन से लेकर कई धुरंधर तक पार्टी छोड़ चुके हैं।
नेतृत्व संकट को हल करे पार्टी
लगातार दो लोकसभा चुनाव में करारी हार मिलने के बाद कांग्रेस पस्त हो गई है। जबकि राजनीतिक धर्म यह कहता है कि उसे और चुस्त होकर जनता के मुद्दों की लड़ाई लड़नी चाहिए थी। लेकिन लड़ाई लड़ने के लिए स्थायी अध्यक्ष का होना ज़रूरी है, जो राहुल गांधी के इस्तीफ़ा देने के एक साल बाद भी पार्टी नहीं खोज पाई है।
अपनी राय बतायें