प्रकृति के प्रहरी पद्म विभूषण सुंदरलाल बहुगुणा का चले जाना भारत ही नहीं पूरे विश्व के जल-जंगल और ज़मीन की आवाज़ का ख़ामोश हो जाना है। दुनिया ही नहीं भारत के भी अधिकांश लोग उन्हें पेड़ों की रक्षा के लिए उत्तराखंड में चले चिपको आंदोलन के सूत्रधार के रूप में जानते हैं। उन्हें वृक्षमित्र के नाम से पुकारा जाता है।
सुंदरलाल बहुगुणा : ज़मीन की आवाज़ का ख़ामोश हो जाना!
- श्रद्धांजलि
- |
- |
- 22 May, 2021

गाँधी जी के आदर्शों को बहुगुणा जी ने केवल सैद्धांतिक रूप से ही स्वीकार नहीं किया बल्कि अपने जीवन में उतारा भी था। वे खादी पहनते थे। गाँधी जी की तरह आश्रम का सादा जीवन जीते थे और गाँधी के सत्याग्रह, अनशन और घूम-घूम कर जन-जागरूकता फैलाने जैसे अस्त्रों का प्रयोग करते थे। यह सब उन्होंने गाँधी जी और उनके अनुयायियों से सीखा था।
वृक्षमित्र होने के साथ-साथ उनके व्यक्तित्व के और भी बहुत से आयाम थे। पर्यावरण के प्रहरी बनने से पहले वे पत्रकार थे, गाँधी जी के स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाने वाले स्वतंत्रता सेनानी थे। सामाज सुधारक थे और विचारक थे।