अलविदा अरुण भाई!सुबह से फ़ेसबुक पर शोक की एक नदी बह रही है जिसके हर क़तरे पर एक नाम है- अरुण पांडेय। यह नदी कई-कई शहरों से गुज़रती हुई विलाप को गहराती जा रही है। यह विलाप उनका भी है जो अरुण भाई से दस-पंद्रह साल बड़े थे या फिर इतने ही छोटे। किसी को यक़ीन नहीं हो रहा है कि हर मुश्किल को आसान बनाने वाले अरुण भाई, इस तरह हार जायेंगे।
‘अरुण भाई का मंद-मंद मुस्कराता चेहरा आँखों के सामने घूम रहा है’
- श्रद्धांजलि
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- 5 May, 2021

टीवी में अरुण जी के साथ काम करने वाले उन्हें बहुत 'शांत' बताते थे और हैं। वे उस तूफ़ान को कभी नहीं समझ सकते जिसे दबाकर अरुण जी शांत नज़र आते थे। कितना मुश्किल रहा होगा वह सब मैनेज करना, पर वे करते थे। इसने उन्हें अगर हाईपरटेंशन का मरीज़ बना दिया तो अचरज कैसा?
कल विमल भाई (विमल वर्मा) का मैसेज आया कि अरुण भाई की हालत ख़राब है तो अनहोनी की आशंका ने परेशान कर दिया। अरुण जी के निकट रिश्तेदार और वरिष्ठ पत्रकार बृज बिहारी चौबे से फोन पर बात की तो उन्होंने भी यही कहा कि अब प्रार्थना ही कर रहे हैं। आख़िरकार काल की चाल भारी पड़ गयी। प्रार्थनाएँ काम नहीं आयीं।
अरुण भाई का मंद-मंद मुस्कराता चेहरा आँखों के सामने घूम रहा है। साथ ही चालीस साल का सफ़र भी। इंदिरा गाँधी की हत्या के कुछ दिन बाद के झंझावाती दिनों में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रगतिशील छात्र संगठन (पीएसओ) के कर्मठ नेता बतौर अरुण भाई से पहली मुलाक़ात हुई थी।