भगत सिंह के वैचारिक नेतृत्व से गठित हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन के सदस्य रहे शिव वर्मा वह आख़िरी क्रांतिकारी थे जो कालापानी से ज़िंदा वापस आये थे। उन्होंने क्रांतिकारियों के बारे में तमाम प्रामाणिक संस्मरण लिखे हैं जिनसे पता चलता है कि भगत सिंह अंतत: बुलेट नहीं, बुलेटिन यानी क्रांतिकारी विचारों को जनता के बीच ले जाने को क्रांति के लिए सबसे ज़रूरी चीज़ मानने लगे थे।
भगत सिंह को मानना यानी सरकार की नज़र में देशद्रोही हो जाना!
- विचार
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- 29 Mar, 2025

आरएसएस कम्युनिज़्म को भारत का शत्रु मानता रहा है और भगत सिंह बोल्शेविक क्रांति और रूसी क्रांति के नायक लेनिन के ज़बरदस्त प्रशंसक थे और भारत में मज़दूरों-किसानों के राज की खुली वक़ालत करते थे।
शिव वर्मा ने लिखा है कि जब काकोरी कांड के नायकों को छुड़ाने की योजना बनाने के लिए भगत सिंह कानपुर आये तो डीएवी कॉलेज के हॉस्टल में उनके साथ ही रहे। यह एक बड़ा 'एक्शन' था (जो बाद में संभव नहीं हो पाया) जिसमें दुबले-पतले शिव वर्मा को नहीं चुना गया था और वह बहुत निराश थे। उनकी उदासी देखकर भगत सिंह ने कहा- ‘हम लोग तो आज़ादी के इस संघर्ष में अपनी लड़ाई लड़ते हुए अपने प्राण त्याग देंगे, पर तुम जैसे मेरे साथियों का काम बहुत जटिल होने वाला है। यह काम है आज़ाद भारत में भी ज़ुल्म और ग़लत बातों के ख़िलाफ़ लड़ते रहना।’