कृश्न चंदर एक बेहतरीन अफ़सानानिगार के अलावा एक बेदार दानिश्वर भी थे। मुल्क के हालात-ए-हाजरा पर हमेशा उनकी गहरी नज़र रहती थी। यही वजह है कि उनके अदब में मुल्क के अहम वाकये और घटनाक्रम भी जाने-अनजाने आ जाते थे। साल 1962 में भारत-चीन के बीच हुई जंग के पसमंजर में लिखा उनका छोटा सा उपन्यास ‘एक गधा नेफा में’ हिंदी-उर्दू अदब में संगे मील की हैसियत रखता है। अकेले अदबी ऐतबार से ही नहीं, बल्कि प्रामाणिक इतिहास के तौर पर भी इसकी काफ़ी अहमियत है। तंजो-मिजाह (हास्य-व्यंग्य) की शैली में लिखा गया, यह उपन्यास कभी पाठकों के दिल को आहिस्तगी से गुदगुदाता है, तो कभी उसे सोचने को मजबूर कर देता है। चीन की साम्राज्यवादी और धोखा देने वाली फितरत को कृश्न चंदर ने बड़े ही ख़ूबसूरती से उजागर किया है।