कृश्न चंदर एक बेहतरीन अफ़सानानिगार के अलावा एक बेदार दानिश्वर भी थे। मुल्क के हालात-ए-हाजरा पर हमेशा उनकी गहरी नज़र रहती थी। यही वजह है कि उनके अदब में मुल्क के अहम वाकये और घटनाक्रम भी जाने-अनजाने आ जाते थे। साल 1962 में भारत-चीन के बीच हुई जंग के पसमंजर में लिखा उनका छोटा सा उपन्यास ‘एक गधा नेफा में’ हिंदी-उर्दू अदब में संगे मील की हैसियत रखता है। अकेले अदबी ऐतबार से ही नहीं, बल्कि प्रामाणिक इतिहास के तौर पर भी इसकी काफ़ी अहमियत है। तंजो-मिजाह (हास्य-व्यंग्य) की शैली में लिखा गया, यह उपन्यास कभी पाठकों के दिल को आहिस्तगी से गुदगुदाता है, तो कभी उसे सोचने को मजबूर कर देता है। चीन की साम्राज्यवादी और धोखा देने वाली फितरत को कृश्न चंदर ने बड़े ही ख़ूबसूरती से उजागर किया है।
चीन: नेहरू ने क्यों कहा था- हमारा मुक़ाबला एक ताक़तवर और बेईमान दुश्मन से है...
- साहित्य
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- 14 Sep, 2020

भारत चीन सीमा तनाव और चीन के चरित्र को प्रसिद्ध लेखक कृश्न चंदर ने 1964 में लिखे अपने उपन्यास 'एक गधा नेफा में' काफ़ी बारीकी से उजागर किया है। तबके चीनी प्रधानमंत्री के साथ एक गधे का काल्पनिक संवाद रोचक है।
आज जब भारत-चीन के बीच एक बार फिर सीमा विवाद चरम पर है, लद्दाख की गलवान घाटी के अलावा दो और क्षेत्रों में चीनी सैनिक अंदर तक घुस आए हैं, यहाँ तक कि इन क्षेत्रों के पास एलएसी की स्थिति को बदल दिया है, दोनों मुल्कों के बीच तनाव घटने का नाम नहीं ले रहा, चीन हमारी सीमा में रोज-ब-रोज नए-नए दावे कर रहा है, ऐसे हालात में ‘एक गधा नेफा में’ की प्रासंगिकता और भी ज़्यादा बढ़ जाती है।