उर्दू अदब की बात हो और राजिंदर सिंह बेदी के नाम के ज़िक्र के बिना ख़त्म हो जाए, ऐसा नामुमकिन है। अपनी दिलचस्प कथा शैली और जुदा अंदाजे-बयाँ की वजह से बेदी उर्दू अफसानानिगारों में अलग से ही पहचाने जाते हैं। कहानी लिखने में उनका कोई सानी नहीं था। अपने फ़िल्म लेखन की मशरूफियतों के चलते हालाँकि वह अपना ज़्यादा वक़्त अदब के लिए नहीं दे सके, लेकिन उन्होंने जितना भी लिखा, वह शानदार है।
राजिंदर सिंह बेदी: जो कहते थे अफ़साना एक अहसास है जिसे पैदा नहीं किया जा सकता
- साहित्य
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- 1 Sep, 2020

उर्दू लेखक राजिंदर सिंह बेदी का आज जन्मदिन है।
बेदी के कथा साहित्य में जन जीवन के संघर्ष, उनकी आशा-निराशा, मोह भंग और अंदर-बाहर की विसंगतियों पर सशक्त रचनाएँ मिलती हैं। सही अल्फाजों का चुनाव और थोड़े में बहुत कुछ कह जाना बेदी की खासियत थी। उनकी कोई भी कहानी उठाकर देख लीजिए, उसमें अक्ल और जज्बात दोनों का बेहतर तालमेल दिखलाई देता है। बेदी की कहानियों के कथानक घटना-प्रधान की बजाय ज़्यादातर भावना-प्रधान हैं, पर इन कहानियों में एक कथ्य ज़रूर है, जिसका निर्वाह वे बड़े ही ईमानदारी से करते थे।
1 सितंबर, 1915 में अविभाजित भारत के लाहौर में जन्मे राजिंदर सिंह बेदी की मातृ भाषा पंजाबी थी, लेकिन उनका सारा लेखन उर्दू ज़बान में ही मिलता है। इक़बाल और फ़ैज़ से लेकर साहिर लुधियानवी, कृश्न चन्दर, राजिंदर सिंह बेदी तक ऐसे सैकड़ों शायर और लेखक हुए हैं, जिनकी मातृभाषा पंजाबी है, पर वे लिखते उर्दू में थे और उनकी पहचान उर्दू के लेखक के तौर पर ही है।