उर्दू अदब की बात हो और राजिंदर सिंह बेदी के नाम के ज़िक्र के बिना ख़त्म हो जाए, ऐसा नामुमकिन है। अपनी दिलचस्प कथा शैली और जुदा अंदाजे-बयाँ की वजह से बेदी उर्दू अफसानानिगारों में अलग से ही पहचाने जाते हैं। कहानी लिखने में उनका कोई सानी नहीं था। अपने फ़िल्म लेखन की मशरूफियतों के चलते हालाँकि वह अपना ज़्यादा वक़्त अदब के लिए नहीं दे सके, लेकिन उन्होंने जितना भी लिखा, वह शानदार है।