बीता साल पंजाबी साहित्य की प्रमुख हस्ताक्षर अमृता प्रीतम का जन्मशती वर्ष था। जन्मशती वर्ष पर जिस तरह से अमृता को याद किया जाना और उनके साहित्य पर बात होनी चाहिए थी, वह पूरे देश में कहीं नहीं दिखाई दी। सरकारों और उसके पैसे से चलने वाली तमाम साहित्यिक अकादमियों को तो छोड़ ही दीजिए, जिस पंजाबी भाषा की वह लेखिका थीं, उसके बोलने—पढ़ने वालों ने भी उन्हें बिसरा दिया। जबकि इस ज़बान को बरतने वाले, पूरी दुनिया में फैले हुए हैं।