बीता साल पंजाबी साहित्य की प्रमुख हस्ताक्षर अमृता प्रीतम का जन्मशती वर्ष था। जन्मशती वर्ष पर जिस तरह से अमृता को याद किया जाना और उनके साहित्य पर बात होनी चाहिए थी, वह पूरे देश में कहीं नहीं दिखाई दी। सरकारों और उसके पैसे से चलने वाली तमाम साहित्यिक अकादमियों को तो छोड़ ही दीजिए, जिस पंजाबी भाषा की वह लेखिका थीं, उसके बोलने—पढ़ने वालों ने भी उन्हें बिसरा दिया। जबकि इस ज़बान को बरतने वाले, पूरी दुनिया में फैले हुए हैं।
अमृता प्रीतम का जन्मदिन: “दंगों की हैवानियत में सबसे ज़्यादा पिसती है औरत”
- साहित्य
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- 31 Aug, 2020

आज यानी 31 अगस्त को अमृता प्रीतम का जन्मदिन है। पढ़िए, उन्हें कैसे याद किया जाना चाहिए।
31 अगस्त, 1919 में अविभाजित भारत के गुजरांवाला में जन्मी अमृता प्रीतम, पंजाबी ज़बान की पहली कवयित्री मानी जाती हैं। भारत-पाक बँटवारे पर लिखी, उनकी लंबी नज़्म ‘आज आखां वारिस शाह नु तू कब्रा विच्चों बोल’ भारत और पाकिस्तान दोनों जगह काफ़ी मक़बूल हुई। सौ से ज़्यादा किताबें लिखने वालीं अमृता प्रीतम ने साहित्य की हर विधा में काम किया। मसलन; कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध, जीवनी, संस्मरण, पंजाबी लोक गीत और आत्मकथा।