भारतीय रंगमंच को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान दिलाने वाले विजय तेंदुलकर, देश के महान नाटककारों में से एक थे। उन्होंने अपने नाटकों में जोखिम उठाकर हमेशा नये विचारों को तरजीह दी। रंगमंच में वर्जित समझे जाने वाले विषयों को अपने नाटक की विषयवस्तु बनाने का साहस उनमें था। नाटक में नैतिकता-अनैतिकता, श्लीलता-अश्लीलता के सवालों से वह लगातार जूझते रहे, मगर इन सवालों से घबराकर उन्होंने कभी अपना रास्ता नहीं बदला, बल्कि हर बार उनका इरादा और भी मज़बूत होता चला गया।