भारतीय रंगमंच को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान दिलाने वाले विजय तेंदुलकर, देश के महान नाटककारों में से एक थे। उन्होंने अपने नाटकों में जोखिम उठाकर हमेशा नये विचारों को तरजीह दी। रंगमंच में वर्जित समझे जाने वाले विषयों को अपने नाटक की विषयवस्तु बनाने का साहस उनमें था। नाटक में नैतिकता-अनैतिकता, श्लीलता-अश्लीलता के सवालों से वह लगातार जूझते रहे, मगर इन सवालों से घबराकर उन्होंने कभी अपना रास्ता नहीं बदला, बल्कि हर बार उनका इरादा और भी मज़बूत होता चला गया।
मैं आदर्शों में यक़ीन करने वाला लेखक नहीं: विजय तेंदुलकर
- साहित्य
- |
- |
- 6 Jan, 2021

नाटककार विजय तेंदुलकर का आज यानी 6 जनवरी को जन्मदिन है।
इस बात का बहुत कम लोगों को इल्म होगा कि शाब्दिक हिंसा और अश्लील संवादों का इल्जाम झेलने वाला उनका नाटक ‘गिद्ध’, लंबे अरसे तक रंगमंच पर खेले जाने की बाट जोहता रहा। बावजूद इसके उन्होंने अपनी हिम्मत नहीं हारी। आख़िरकार ‘गिद्ध’ खेला गया और उसे ज़बर्दस्त कामयाबी मिली। कमोबेश यही हालात उनके नाटक ‘सखाराम बाइंडर’, ‘मच्छिंद मोरे के जानेमन’ और ‘बेबी’ के प्रदर्शन के वक़्त भी बने। इन नाटकों में कथित अश्लील दृश्यों एवं हिंसक शब्दावली के प्रयोग पर शुद्धतावादियों ने कड़े एतराज़ उठाए। लेकिन उन्हें हर बार मुँह की खानी पड़ी।