‘‘कहानी बन कर जिए हैं इस जमाने में
'कहानी बन कर जिए हैं इस जमाने में, सदियाँ लग जाएँगी हमें भुलाने में'
- साहित्य
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- 4 Jan, 2021

कवि और गीतकार नीरज का आज यानी 4 जनवरी को जन्म दिन है।
सदियां लग जाएंगी हमें भुलाने में
आज भी होती है दुनिया पागल
जाने क्या बात है नीरज के गुनगुनाने में।’’
इन बेमिसाल पंक्तियों के गीतकार, कवि गोपाल दास ‘नीरज‘ उस कवि सम्मेलन परम्परा के आख़िरी वारिस थे, जिन्हें सुनने और पढ़ते हुए देखने के लिए हज़ारों श्रोता रात-रात भर बैठे रहते थे। उनकी रचनाओं में गीतों का माधुर्य और जीवन का संदेश एक साथ होता था।
नीरज का नाम हिन्दी के उन कवियों में शुमार किया जाता है, जिन्होंने मंच पर कविता और गीतों को नई बुलंदियों तक पहुँचाया। उनकी आवाज़ और गीतों का जादू श्रोताओं के सिर चढ़कर बोलता था। जब वे अपनी विरल स्वर लहरी में गीत पढ़ते, तो सुनने वालों के जेहन पर नशा सा तारी हो जाता। श्रोता मदहोश हो जाते। भाव अतिरेक में झूमने लगते। ज्यों-ज्यों नीरज के गीतों को सुनते, उनकी प्यास और भी ज़्यादा बढ़ती जाती। शहंशाहे-तरन्नुम शायर जिगर मुरादाबादी तक नीरज की आवाज़ के शैदाई थे। देहरादून के एक मुशायरे में, जिसकी सदारत जिगर मुरादाबादी खुद कर रहे थे, जब उन्होंने नीरज की कविता सुनी, तो एक के बाद एक उन्होंने उनसे उनकी तीन कविताएँ पढ़वाईं और हर कविता के बाद नीरज की पीठ ठोककर यह कहा, ‘उम्रदराज हो इस लड़के की। क्या पढ़ता है, जैसे नगमा गूंजता है।’