शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी 25 दिसम्बर को इस फानी दुनिया से जुदा हो गए। वे काफी लंबे समय से बीमार चल रहे थे। 30 सितंबर 1935 को उत्तर प्रदेश में जन्मे फ़ारुक़ी ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से एमए की डिग्री हासिल की थी। बुनियादी तौर पर अंग्रेज़ी साहित्य के छात्र रहे फ़ारूक़ी को 'सरस्वती सम्मान, 'पद्म श्री' समेत कई बड़े पुरस्कारों से नवाजा गया था। समालोचना तनकीदी अफकार के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। 'कई चांद थे सरे आसमां' उनका चर्चित उपन्यास है। यह उपन्यास कई जबानों में अनुवाद हुआ।
फ़ारूक़ी : जिन्हें भारत और पाकिस्तान दोनों ने इज़्ज़त बख़्शी
- श्रद्धांजलि
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- 26 Dec, 2020

शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी 25 दिसम्बर को इस फानी दुनिया से जुदा हो गए। वे काफी लंबे समय से बीमार चल रहे थे। 30 सितंबर 1935 को उत्तर प्रदेश में जन्मे फ़ारुक़ी को 'सरस्वती सम्मान, 'पद्म श्री' समेत कई बड़े पुरस्कारों से नवाजा गया था।
समूचे दक्षिण एशिया में आलोचक शम्सुर्रहमान फ़ारुक़ी का नाम किसी परिचय के मोहताज नहीं है। उर्दू-हिंदी अदबी दुनिया में उनका नाम इज्ज़तो-एहतराम के साथ लिया जाता है। आधुनिक उर्दू आलोचना में किया गया उनका काम संगे मील है। उर्दू में जदीदयत के अदबी रवैये को बढ़ावा देने में जिन शख़्सियों के नाम आते हैं, उनमें शम्सुर्रहमान फ़ारुक़ी का नाम सबसे अव्वल नंबर पर शुमार किया जाता है। ‘कई चाँद थे सरे आसमां’ उनका पहला उपन्यास है।