कृष्ण जन्माष्टमी अभी गुजरी है। अमूमन इस रोज़ सोशल मीडिया पर उर्दू/मुसलमान शायरों की कृष्ण भक्ति या कृष्ण महिमा में लिखी गई कविताएँ उद्धृत की जाती रही हैं। इस वर्ष यह उत्साह कम दिखलाई पड़ा। क्या इसका कारण बदले हुए राजनीतिक माहौल के कारण पैदा हुई सांस्कृतिक निराशा है?
प्रेमचंद 140 : 14वीं कड़ी : हिन्दू रचनाकारों में दूसरे धर्मों के प्रति उत्सुकता नहीं के बराबर?
- साहित्य
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- 13 Aug, 2020

अकादमिक और लोकप्रिय चर्चा में भी अक्सर यह दिखलाने की कोशिश होती है कि इसलाम पर कितना हिन्दू या ‘भारतीय’ रंग चढ़ गया है और वह कितना अरबी इसलाम से अलग हो गया है। मुसलमान तो हिन्दू धर्म, रीति-रिवाजों से परिचित हों, ईसाई भी, लेकिन हिन्दुओं को यह ज़रूरत शायद ही कभी महसूस हुई। वे खुद को स्वतःसम्पूर्ण मानते रहे जिन्हें अन्य धार्मिक परंपराओं से परिचय की कतई आवश्यकता नहीं।