‘युवक को आशावादी मन से लिखना चाहिए,’ उसकी आशावादिता संक्रामक होनी चाहिए, जिसमें कि वह दूसरों में भी उसी भावना का संचार कर सके। मेरे विचार में साहित्य का सबसे ऊँचा लक्ष्य दूसरों को उठाना, उन्नत करना है। हमारे यथार्थवाद को भी यह बात भूलनी न चाहिए। कितना अच्छा कि आप ‘मनुष्यों’ की सृष्टि करें, निर्भीक, सच्चे, स्वाधीन मनुष्य, हौसलेमंद, साहसी मनुष्य, ऊँचे आदर्शों वाले मनुष्य। इस वक्त ऐसे ही आदमियों की ज़रूरत है।’
प्रेमचंद 140 : 13वीं कड़ी : दुराव और नफ़रत से प्रेमचंद का मन दुखता है
- साहित्य
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- 10 Aug, 2020

कथाकार अपने समय के सत्य और असत्य की पहचान में वक़्त और मेहनत लगाता है। सत्य वह नहीं है, जिसमें प्रेम और अहिंसा न हो। प्रेमचंद का मन दुखता है जब वे देखते हैं कि उनके लोगों में दुराव, नफ़रत और दूसरों पर कब्जा करने की क्षुद्रता बढ़ती जाती है, न्याय, समानता, बंधुत्व का भाव लुप्त होता जाता है।