‘युवक को आशावादी मन से लिखना चाहिए,’ उसकी आशावादिता संक्रामक होनी चाहिए, जिसमें कि वह दूसरों में भी उसी भावना का संचार कर सके। मेरे विचार में साहित्य का सबसे ऊँचा लक्ष्य दूसरों को उठाना, उन्नत करना है। हमारे यथार्थवाद को भी यह बात भूलनी न चाहिए। कितना अच्छा कि आप ‘मनुष्यों’ की सृष्टि करें, निर्भीक, सच्चे, स्वाधीन मनुष्य, हौसलेमंद, साहसी मनुष्य, ऊँचे आदर्शों वाले मनुष्य। इस वक्त ऐसे ही आदमियों की ज़रूरत है।’