‘‘कोई ‘सरदार’ कब था इससे पहले तेरी महफिल में
अली सरदार जाफरी: ‘मैं मर के अमर हो जाता हूँ...’
- साहित्य
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- 29 Nov, 2020

आज यानी 29 नवम्बर को शायर अली सरदार जाफरी का जन्मदिन है।
बहुत अहल-ए-सुखन उट्ठे बहुत अहल-ए-कलाम आये।’’
अली सरदार जाफरी का यह शेर उनकी अज़्मत और उर्दू अदब में अहमियत बतलाने के लिए काफ़ी है। अली सरदार जाफरी एक अकेले शख्स का नाम नहीं, बल्कि एक पूरे अहद और तहरीक का नाम है। उनका अदबी काम, सियासी-समाजी तहरीक में हिस्सेदारी और तमाम तहरीरें इस बात की तस्दीक करती हैं। वे न सिर्फ़ एक जोशीले अदीब, इंक़लाबी शायर थे, बल्कि मुल्क की आज़ादी की तहरीक में भी उन्होंने सरगर्म हिस्सेदारी की। उन्होंने अपनी ज़िंदगी के लिए जो उसूल तय कर रखे थे, उन पर आख़िरी दम तक चले। अली सरदार जाफरी तरक्कीपसंद तहरीक के बानियों में से एक थे और आख़िरी वक़्त तक वे इस तहरीक से जुड़े रहे। मुल्क भर में तरक्कीपसंद तहरीक को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने काफ़ी कुछ किया। मशहूर अफसानानिगार कृश्न चंदर उनकी अज़्मत को कम्युनिस्ट पार्टी की निशानी हंसिया हथौड़ा के तौर पर देखते थे, तो सज्जाद जहीर की नज़र में भी सरदार जाफरी का बड़ा मर्तबा और एहतराम था। उनके बारे में जहीर का ख्याल था, ‘सरदार हमारी तहरीक की शमशीर-ए-बेनियाम हैं।’ यही नहीं उनका तो यहाँ तक मानना था, ‘सरदार जाफरी बहस-मुबाहिसे के मैदान के शहसवार हैं।’ अली सरदार जाफरी ने अपनी पूरी ज़िंदगी अदब और आंदोलनों के नाम कर दी थी। चाहे आज़ादी का आंदोलन हो, कामगार-मज़दूरों के धरने-प्रदर्शन, स्टूडेंट्स मूवमेंट हो या फिर अदीबों का आंदोलन वे इन सभी आंदोलनों में हमेशा पेश रहते थे। कृश्न चंदर का अली सरदार जाफरी के बारे में कहना था, ‘उनसे मिलो, तो मालूम होता है कि किसी तहरीक से मिल रहे हैं।’