उर्दू अदब में फै़ज़ अहमद फै़ज़ का मुकाम एक अज़ीमतर शायर के तौर पर है। वे न सिर्फ उर्दूभाषियों के पसंदीदा शायर हैं, बल्कि हिंदी और पंजाबी भाषी लोग भी उनसे उतनी ही शिद्दत से मुहब्बत करते हैं। गोया कि फ़ैज़ भाषा और क्षेत्रीयता की सभी हदें पार करते हैं। एक पूरा दौर गुजर गया, लेकिन फ़ैज़ की शायरी आज भी हिंद उपमहाद्वीप के करोड़ों-करोड़ लोगों के दिल-ओ-दिमाग पर छाई हुई है। उनकी नज्मों-गजलों के मिसरे और अशआर लोगों की जुबान पर मुहावरों और कहावतों की तरह चढ़े हुए हैं। सच मायने में कहें, तो फ़ैज़ अवाम के महबूब शायर हैं और उनकी शायरी हरदिल अजीज।
विशेष: फ़ैज़ की शायरी से ख़ौफ़ खाती रहेंगी तानाशाह हुक़ूमतें
- साहित्य
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- 20 Nov, 2020

भारत और पाकिस्तान के तरक्कीपसंद शायरों की फेहरिस्त में ही नहीं, बल्कि समूचे एशिया उपमहाद्वीप और अफ्रीका की आज़ादी और समाजवाद के लिए किए गए संघर्षों के संदर्भ में भी फ़ैज़ सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रासंगिक शायर हैं। उनकी शायरी जहां इंसान को शोषण से मुक्त कराने की प्रेरणा देती है, तो वहीं एक शोषणमुक्त समाज की स्थापना का सपना भी जगाती है। उन्होंने अवाम के नागरिक अधिकारों के लिए और सैनिक तानाशाही के ख़िलाफ़ जमकर लिखा। फै़ज़ अहमद फ़ैज़ की पुण्यतिथि पर विशेष।
प्रगतिशील लेखक संघ के बानी सज्जाद जहीर, फ़ैज़ की मक़बूलियत के बारे में कहते हैं, ‘‘मैं समझता हूं कि हिंदुस्तान और पाकिस्तान बल्कि इन मुल्कों के बाहर भी जहां फ़ैज़ के बारे में लोगों की जानकारी है, उनकी असाधारण लोकप्रियता और लोगों को उनसे गहरी मुहब्बत का एक कारण उनके काव्य की खूबियों के अलावा यह भी है कि लोग फ़ैज़ की जिंदगी और उनके अमल, उनके दावों और उनकी कथनी में टकराव नहीं देखते।’’