‘क़ायदे से हमें कहना चाहिए कि हत्या और विद्रोह एक दूसरे से विरोधी हैं।’ अगर हम नहीं हैं तो मैं नहीं हूँ।
प्रेमचंद 140 : नौवीं कड़ी :क्या क्रांतिकारी हिंसा जीवन के प्रति प्रेम को जन्म देती है?
- साहित्य
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- 4 Aug, 2020

भारत में मुक्ति या क्रांति के नाम पर हिंसा की वैधता को लेकर तीखी बहस रही है। हिंसक क्रांति या विद्रोह का विचार घातक रूप से आकर्षक बना हुआ है। भारत में एक हीन भावना अंग्रेज़ों से मिली आज़ादी को लेकर भी है। उसे अहिंसक मानते ही वह किंचित् हीन हो उठती है। इसी कारण सावरकर की पूजा एक बड़ी आबादी करती है।
विद्रोह को अनिवार्यतः हत्या का विरोध करना चाहिए क्योंकि उसूलन विद्रोह (इस तरह की) मौत के ख़िलाफ़ प्रतिरोध है।
(अल्बेयर कामू अपने निबंध ‘विद्रोही’ में)