उमर अब्दुल्ला नाराज़ हैं। भारत के विपक्ष से, संसद से और अपने आप से। अपने साथ किए गए धोखे से वह नाराज़ हैं। वह क्षुब्ध हैं कि भारत के प्रधान मंत्री से पिछले साल जब उनकी आख़िरी मुलाक़ात हुई थी तो उन्होंने ऐसा कोई इशारा नहीं किया था कि कुछ ही दिनों में जम्मू और कश्मीर की रही-सही स्वायत्तता का अपहरण कर लिया जाएगा और उसके दो टुकड़े कर दिए जाएँगे। उससे स्वतंत्र राज्य का दर्जा छीनकर केंद्रशासित प्रदेश के रूप में उसकी पदावनति कर दी गई, इससे वह अपमानित महसूस कर रहे हैं। गृह मंत्री ने कश्मीर के बारे में संसद में मिथ्या भाषण दिया, इसलिए वह ख़फ़ा हैं। वह मिथ्याचरण जारी है।
उमर अब्दुल्ला नाराज़ हैं, भारत के विपक्ष से, संसद से और अपने आप से…
- वक़्त-बेवक़्त
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- 2 Aug, 2020

उमर हों या महबूबा मुफ़्ती, उन्हें अकेले में ख़ुद से पूछना होगा कि उन्होंने उस राजनीति को कितना बल दिया जिसने उन्हें निगल लिया। जब उन्होंने पहली बार भारतीय जनता पार्टी से समझौता किया और इस तरह उसे राजनीतिक रूप से स्वीकार्य और सह्य बनाने में अपना स्वर मिलाया तब क्या उन्हें कभी यह ख्याल आया कि इसका आशय न सिर्फ़ भारत के अल्पसंख्यक समुदाय के लिए क्या होगा बल्कि यह भारत की शक्ल को ही किस तरह बदल देगा।
अभी हाल में कांग्रेस नेता सैफ़ुद्दीन सोज़ ने सर्वोच्च न्यायालय में जब अपने ऊपर लगी पाबंदी को चुनौती दी तो सरकार ने कह दिया कि उसने उन पर कोई रोक नहीं लगाई है। इतना सुनना था कि अदालत ने तुरत-फ़ुरत उनकी याचिका को किनारे कर दिया। फिर सबने देखा कि 83 साल के सोज़ साहब को किस तरह बाड़ेबंदी में रखा गया है और वह बाहर एक क़दम नहीं रख सकते।