“कहते हैं चित्र और मूर्ति का प्रभाव कला में विश्व-व्याप्त होता है। विश्व के किसी भी कोने में उनकी पहुँच होती है। कला का वह रूप अपनी प्रेरणा से रस खींचता है, निर्माण में बचपन की-सी सरलता बोता है और अपनी लगन में इतना रंग जाता है कि लोग अपनी दिशा का उसे दीवाना कहने लगें। उसका महान गौरव और उसके महान गौरव-कर्त्ता यह नहीं जान पाते कि वह कठोर मज़दूरी करता है, तब अपनी सूझ के मुक्ता कणों को पात्रों का रूप देकर वह समझ, आकर्षण और चाह के देव-मन्दिरों में पहुँचा पाता है।”