“कहते हैं चित्र और मूर्ति का प्रभाव कला में विश्व-व्याप्त होता है। विश्व के किसी भी कोने में उनकी पहुँच होती है। कला का वह रूप अपनी प्रेरणा से रस खींचता है, निर्माण में बचपन की-सी सरलता बोता है और अपनी लगन में इतना रंग जाता है कि लोग अपनी दिशा का उसे दीवाना कहने लगें। उसका महान गौरव और उसके महान गौरव-कर्त्ता यह नहीं जान पाते कि वह कठोर मज़दूरी करता है, तब अपनी सूझ के मुक्ता कणों को पात्रों का रूप देकर वह समझ, आकर्षण और चाह के देव-मन्दिरों में पहुँचा पाता है।”
प्रेमचंद 140 : 10वीं कड़ी : अज्ञेय ने कहा था, नैतिक मानव की खोज में थे प्रेमचंद
- साहित्य
- |
- |
- 6 Aug, 2020

भाषा और लेखक का संबंध कैसा हो? माखनलाल चतुर्वेदी प्रेमचंद के विषय में लिखते हैं, 'वे शब्दों में डूबते-उतराते, अर्थों से उलझ और सुलझकर चलते, रस को बात करते ही प्रारम्भ कर देते, छन्दों की-सी वक्र गति से कहन को बचाते ....' माखनलाल चतुर्वेदी ठीक ही प्रेमचंद की ‘कठोर मज़दूरी को चिह्नित करते हैं। प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर सत्य हिन्दी की विशेष शृंखला, 10वीं कड़ी।
माखनलाल चतुर्वेदी ठीक ही प्रेमचंद की ‘कठोर मज़दूरी को चिह्नित करते हैं। उनकी भाषा जो इतनी सहज जान पड़ती है, पानी की तरह बहती हुई, उसके पीछे शब्दों और भाषा की दीर्घ साधना तो है ही, ख़ुद का उनके साथ घोर परिश्रम है। कई बरस पहले की एक बात याद आती है। तब मैं मोटरसाइकल चलाता था। किसी गड्ढे या रुकावट में वह उछली और चाभी भी इग्निशन प्वाइंट से निकलकर कहाँ गिर गई, मालूम ही नहीं हुआ। तब एक ताला डॉक्टर के पास रुककर डुप्लीकेट चाभी बनाने की गुज़ारिश की। बुज़ुर्गवार ने एक सपाट चाभी ली, एक मोमबत्ती पर पहले उसे रखा। फिर उस चाभी को इग्निशन प्वाइंट में डालकर निकाला और उसमें बस एक निशान-सा उकेर दिया। इसकी फ़ीस 30 रुपये थी। मैंने पैसे देते हुए ज़रा मोलतोल के भाव से कहा, “लगा तो सिर्फ़ एक मिनट।” बुज़ुर्गवार ने पैसे रखते हुए बस इतना जवाब दिया, ‘तीस साल लगे हैं इसमें।’