‘इस शरारत का बदला किसी ग़रीब मुसलमान से न लीजिएगा, मेरी आपसे यही दरख़्वास्त है।”
प्रेमचंद 140 : छठी कड़ी- प्रेमचंद : दीन और इंसानियत
- साहित्य
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- 28 Jul, 2020

प्रेमचंद किसी भी तरह हिंदुओं की असुरक्षा के तर्क को मानने को तैयार नहीं। वे इस बात को भी नहीं क़बूल कर सकते कि इस देश में मुसलमानों या अन्य धर्मालंबियों को हिंदुओं की शक्ल में ढल जाना चाहिए।
“मेरा कोई अहसान आप पर नहीं है - सिर्फ़ यह इल्तजा करती हूँँ कि आपके मुल्क में अक़लियत का कोई मज़लूम हो तो याद कर लीजिएगा।’