‘दूध का दाम’ कहानी का विरोध संसद में किया गया था यह कहकर कि यह दलितों का अपमान करती है। जातिसूचक संज्ञा का इस्तेमाल प्रमाण बताया जाता है इस कहानी के दलितविरोधी होने का। एक ढोंग हमारे समाज में पलता रहता है। जिसे हम असंवैधानिक मानते हैं, वह हमारे रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कतई कबूल रहता ही है।
प्रेमचंद 140 : 20 वीं कड़ी : जातिवाद पर गहरी चोट की थी प्रेमचंद ने
- साहित्य
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- 29 Mar, 2025

प्रेमचंद जातिभेद के स्रोत को नहीं भुलाना चाहते। हालाँकि अपने लेखों में वे ‘अछूतोद्धार’ की समझ और भाषा का प्रयोग करते दीखते हैं और मानते हैं कि उन्हें हिंदू धर्म में शामिल करके उन्हें उनकी आदतों से मुक्त किया जा सकता है। लेकिन उनकी कहानियों और उपन्यासों में जातिभेद की बीभत्सता के चित्र ही मिलते हैं। ‘अछूतों’ के जीवन के ‘विकार’ के नहीं।