केंद्र सरकार के जिन तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसान प्रदर्शन कर रहे हैं उन्हीं क़ानूनों के ख़िलाफ़ केरल की विधानसभा ने एक प्रस्ताव पास किया है। प्रस्ताव में कहा गया है कि केंद्र सरकार इन विवादास्पद क़ानूनों को वापस ले जिन्हें जल्दबाज़ी में संसद द्वारा लागू किया गया। केरल की पिनराई विजयन की सरकार ने किसानों के मुद्दे पर चर्चा के लिए एक घंटे के लिए विशेष सत्र बुलाया था। विजयन की सरकार विधानसभा का सत्र काफ़ी पहले बुलाना चाहते थे, लेकिन राज्यपाल ने पहले सत्र बुलाने की मंजूरी नहीं दी थी। इस पर काफ़ी विवाद भी हुआ था। लेकिन बाद में राज्यपाल ने इस सत्र के लिए सहमति जताई।
केरल विधानसभा में यह प्रस्ताव तब लाया गया है जब किसानों और केंद्र के बीच सहमति नहीं बन पाई है। हालाँकि, बुधवार को छठे दौर की वार्ता के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री ने दावा किया है कि विवाद के चार मुद्दों में से 2 मुद्दों पर सहमति बन गई है।
बुधवार की बैठक के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि किसानों की शंका थी कि पराली वाले अध्यादेश में किसानों को नहीं रखा जाना चाहिए, सरकार ने किसानों की इस बात को मान लिया है। तोमर ने कहा कि प्रस्तावित बिजली क़ानून को लेकर किसानों की कुछ मांग थी, सरकार और यूनियन के बीच में इस मांग को लेकर रजामंदी हो गई है।
कृषि मंत्री ने यह भी कहा था, 'किसान नेताओं ने एक बार फिर कहा कि नए कृषि क़ानूनों को रद्द कर दिया जाना चाहिए। इस पर सरकार की ओर से कहा गया कि सरकार इस मसले पर और चर्चा करने के लिए तैयार है।' उन्होंने कहा कि जहां तक एमएसपी का मसला है, किसान चाहते हैं कि एमएसपी को लेकर क़ानूनी गारंटी होनी चाहिए, इसे लेकर चर्चा जारी है और अगली बैठक में इस विषय पर चर्चा होगी।
केंद्र और किसानों के बीच अगली बैठक अब 4 जनवरी को होगी। लेकिन इस बीच किसानों का प्रदर्शन जारी है। और इन्हीं घटनाक्रमों के बीच केरल की विधानसभा का सत्र जब गुरुवार को बुलाया गया तो इसमें किसानों के मुद्दे पर चर्चा हुई।
केरल विधानसभा ने सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पास किया। विधानसभा में बीजेपी के एकमात्र सदस्य ओ राजगोपाल ने प्रस्ताव से असहमति ज़रूर जताई लेकिन विरोध में वोट नहीं किया।
इससे पहले विधानसभा में प्रस्ताव पेश करते हुए मुख्यमंत्री विजयन ने कहा, 'ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जहाँ केंद्र सरकार द्वारा कृषि उत्पादों की खरीद की जाए और उचित मूल्य पर ज़रूरतमंदों को वितरित किया जाए। इसके बजाय, इसने कॉरपोरेट्स को कृषि उत्पादों में व्यापार करने की अनुमति दी है। केंद्र किसानों को उचित मूल्य प्रदान करने की अपनी ज़िम्मेदारी से बच रहा है।'
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि यदि किसानों का प्रदर्शन जारी रहा तो केरल बुरी तरह प्रभावित होगा। उन्होंने कहा कि यदि कृषि उत्पाद केरल में आना बंद हो जाए तो राज्य में भूखे रहने की नौबत आ सकती है। उन्होंने किसानों के प्रदर्शन को ऐतिहासिक बताया और अनुरोध किया कि केंद्र किसानों की माँग मानते हुए कृषि क़ानूनों को रद्द कर दे।
हालाँकि, इस प्रस्ताव से उन क़ानूनों पर कुछ असर नहीं पड़ेगा, लेकिन राजनीतिक रूप से केंद्र की बीजेपी सरकार पर असर पड़ेगा।
वैसे, केरल के विधानसभा सत्र को बुलाना इतना आसान भी नहीं रहा। इस पर भी काफ़ी विवाद हुआ। यह विवाद वामपंथी सरकार और राज्य के राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद ख़ान के बीच रहा।
राज्यपाल ख़ान ने इससे पहले विवादास्पद क़ानूनों पर चर्चा करने के लिए 23 दिसंबर को विशेष सत्र बुलाने से इनकार कर दिया था। उन्होंने यह कहते हुए आपत्ति की थी कि मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने संक्षिप्त सत्र के लिए आपातकालीन स्थिति पर उनके द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब नहीं दिया था।
राज्यपाल के इस फ़ैसले की काफ़ी आलोचना हुई थी क्योंकि वह संवैधानिक रूप से मंत्रियों की परिषद द्वारा लिए गए निर्णयों के प्रति बाध्य हैं। इसके बाद 24 दिसंबर को राज्य मंत्रिमंडल ने विधानसभा बुलाने के लिए एक और सिफारिश भेजी। और इस बार घंटे भर के विशेष सत्र के लिए राज्यपाल ने मंजूरी दे दी थी।
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