केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण का छठा बजट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूंजीपति प्रेम के बावजूद हालिया आम चुनाव में बीजेपी की करारी हार से उनकी आंखें खुलने और युवाओं को रोजगार देने के गंभीर उपाय करने की मजबूरी से डांवाडोल स्थिति में है। बजट में अगले पांच साल में एक करोड़ युवाओं को 5,000 रुपए मासिक वजीफे पर इंटर्नशिप कराने जैसी घोणणाओं से साफ़ है कि प्रधानमंत्री मोदी पिछले दिनों आठ करोड़ नौकरी देने वाले अपने बयान के प्रति शायद खुद ही आश्वस्त नहीं हैं। ताज्जुब ये कि चुनावी हार ने उन्हें कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र को ही लागू करने पर मजबूर कर दिया।
याद रहे कि कांग्रेस ने ग्रेजुएट युवाओं को 8,500 रुपए मासिक वजीफे पर साल भर की अप्रेंटिसशिप कराने की गारंटी चुनाव के दौरान दी थी। बजट में युवाओं को उच्च शिक्षा के लिए बिना गारंटी 7.5 लाख रुपए लोन देने, एंजल टैक्स खत्म करके पूंजी निवेश बढ़ाने और मनरेगा की राशि में कोई कटौती नहीं करने जैसे उपाय भी गांवों में और युवाओं में फैली बेरोजगारी के प्रति मौजूदा सरकार की घबराहट के प्रतीक हैं। इनके बूते प्रधानमंत्री मोदी ने कम से कम महाराष्ट्र, हरियाणा एवं झारखंड के सिर पर खड़े विधानसभा चुनावों में युवाओं को लाॅलीपाॅप देने का बहाना तो ढूंढ ही लिया। इनसे मिलते-जुलते वायदे कांग्रेस ने ही अपने घोषणा पत्र में युवाओं से किए थे। इसी तरह बजट में आज घोषित रोजगार से जुड़े इंसेंटिव वाली योजना भी कांग्रेस के घोषणा पत्र में उल्लिखित है। इससे पहले बीजेपी की भागीदारी वाली महाराष्ट्र की महायुति सरकार ने भी इसी तरह लाड़ला भाउ और लाड़ली बहना कार्यक्रमों की घोषणा की है जिनमें महिलाओं एवं युवाओं को निश्चित राशि हरेक महीने देने का प्रावधान है। यह दोनों स्कीम कांग्रेस द्वारा हिमाचल प्रदेश एवं राजस्थान में लागू की जा चुकी हैं।
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में सोना, चांदी और प्लेटिनम पर आयात शुल्क घटाने से लेकर आयकर छूट में मामूली बढ़ोतरी करके मध्यवर्ग एवं महिलाओं को लुभाने की कोशिश की है। इससे महिलाएं जहां सोने-चांदी एवं प्लेटिनम के गहने घरेलू बाजार में कुछ सस्ते खरीद पाएंगी वहीं गहनों के निर्यातक भी अधिक मुनाफा कमाएंगे। इसी तरह देश में हीरे का उत्खनन करने वाली कंपनियों द्वारा भारत में बेचे गए कच्चे अर्थात अपरिष्कृत हीरे पर टैक्स माफ कर दिया गया है। इसे गृहमंत्री अमित शाह को सात लाख वोट से लोकसभा चुनाव में जिताने के गुजराती मतदाताओं एवं हीरा कारोबारियों के अहसान का बदला समझा जा सकता है। इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उद्घाटित सूरत के हीरा एक्सचेंज में कारोबार को बढ़ावा देने की नीयत से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि हीरों की कटिंग,पाॅलिशिंग एवं उसके गहने बनाने का गुजरात के सूरत में बड़ा कारोबार है। जिसकी जड़ें राज्य के अन्य नगरों एवं कस्बों में भी फैली हुई हैं। भारतीय बाज़ार में प्लेटिनम के गहनों की मांग भी लगातार बढ़ रही है और सस्ता कच्चा माल उपलब्ध होने पर उसके गहने बनाने का कारोबार बढ़ने की संभावना है। हीरे और प्लेटिनम के गहनों का निर्यात विशेषकरर मुंबई के गुजराती समुदाय द्वारा किया जाता है। इनकी मांग में देश के नवधनाढ्य तबके के बीच भी तेजी आ रही है।
इसी तरह विदेशी क्रूज कंपनियों को भी भारत में क्रूज चलाने पर करों में छूट की घोणणा बजट में की गई है। इसके पीछे भी मध्य एवं उच्चमध्यवर्ग के बीच क्रूज में समुद्र के बीचोंबीच सैर करने, जन्मदिन, शादी की सालगिरह एवं अन्य यादगार मौक़ों पर क्रूज पार्टी आयोजित करने की बढ़ती प्रवृत्ति है। क्रूज पर पर्यटन पिछले कुछ साल में भारतीयों के बीच भी खासा लोकप्रिय हुआ है। निजी कंपनियों एवं सरकारी कर्मचारियों को साल में घुमने के लिए एक बार मिलने वाले एलटीसी का फायदा उठाकर लोग अब सपरिवार क्रूज यात्रा पर जाने लगे हैं। इससे क्रूज यात्रा सस्ती होगी। इन उपायों के पीछे मध्य एवं उच्च मध्यवर्ग को खुश करके महाराष्ट्र एवं हरियाणा के विधानसभा चुनाव में वोट बटोरने की बीजेपी की नीयत से इनकार नहीं किया जा सकता है।
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण यह बात अपने अंतरिम बजट भाषण में ही कबूल कर चुकी हैं कि प्रत्यक्ष करों यानी मुख्यतः जीएसटी की वसूली मोदी के राज में तीन गुना से भी अधिक बढ़ी है। लेकिन वो अपने बजट भाषण में ये प्रमुख तथ्य छिपा गईं कि इन करों को चुकाने में 67 फीसदी योगदान देश में गरीबी रेखा और उससे लगते तबक़े के लोगों का है।
नई कराधान प्रणाली के तहत अब सालाना सात लाख रूपए तक आमदनी वालों की आय करमुक्त है। उनकी कोई भी आयकर देनदारी नहीं है मगर वस्तुओं एवं सेवाओं के दाम में छुपे करों का भुगतान उन्हें बदस्तूर करते रहना होगा। कुल मिलाकर कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं महिला तथा बाल विकास जैसे आम जनता के कल्याण एवं देश की प्रत्यक्ष तरक्की से जुड़े महकमों में हरेक के बजट को क़रीब एक लाख से डेढ़ लाख करोड़ रुपए के लपेटे में निपटा दिया गया है जबकि रक्षा के लिए चार लाख करोड़ और बुनियादी ढांचे के लिए दस लाख करोड़ रुपए से ज़्यादा राशि का बजट निर्धारित किया गया है। यह समझ से परे है कि सबका साथ, सबका विश्वास और सबका प्रयास का दावा करने वाले प्रधानमंत्री मोदी की सदारत में बनी लगातार तीसरी सरकार चुनाव में तगड़ी ठोकर लगने के बावजूद जनता के प्रत्यक्ष कल्याण से जुड़े इन महकमों का बजट देश की महिला, बालक, युवा एवं बुजुर्ग आबादी की महती ज़रूरतों के अनुपात में क्यों नहीं बढ़ा पाई। इनके मुक़ाबले चालू माली साल में निजी कंपनियों को 30 फीसद तक हुए मुनाफे के बावजूद नया निवेश लचर रहने पर भी वित्तमंत्री काॅरपोरेट टैक्स में उन्हें दी जा रही अरबों की रियायत में कटौती करके आम लोगों की शिक्षा, स्वास्थ्य, आमदनी आदि की सुविधाएं बढ़ाने के लिए अधिक रक़म क्यों नहीं जुटा पाई? गौरतलब है कि मोटे मुनाफे के बावजूद निजी कंपनियों द्वारा वांछित मात्रा में नया पूंजी निवेश करने पर आर्थिक सर्वेक्षण में भी भौंह चढ़ाई गई है!
अपनी राय बतायें