महिलाओं का मंगलसूत्र बचाने के हिमायती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव बाद पहले ही बजट ने ब्याहताओं को उनके सुहाग की सोने की निशानी पर 6000 रुपए प्रति तोले का चूना लगा दिया। बजट प्रावधानों से देश की करोड़ों महिलाओं को उनके जेवरात एवं संचित सोने पर क़रीब छह लाख करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। बजट में सोने पर आयात शुल्क एवं कृषि उपकरों में नौ फीसद की कटौती होने से गहने के निर्यातकों एवं सोने के नए खरीदारों को तो फायदा होगा मगर घरों में आड़े वक्त के लिए जमा सोने की कीमत में आम लोगों को भारी चूना लग गया। इससे भारतीय रिजर्व बैंक में रुपए की गारंटी के बदले जमा सोने की कीमत में भी भारी गिरावट आई है। देखना ये है कि क्या सरकार को इसकी भरपाई के लिए सोना खरीदना पड़ेगा? साथ ही कहीं प्रतिभूति के रूप में रिजर्व बैंक में जमा सोने का दाम घटने से रुपए की अंतरराष्ट्रीय कीमत तो प्रभावित नहीं होगी?
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी ने 2024 के आम चुनाव में राजस्थान के बांसवाड़ा में चुनावी भाषण में महिलाओं को विपक्ष द्वारा उनका मंगलसूत्र और उनके सोने के जेवर छीन लेने का आरोप लगाकर डराया था। उन्होंने ये निराधार आरोप कांग्रेस के घोषणा पत्र में सभी घरों की सामाजिक-आर्थिक जनगणना कराने के वायदे के बहाने लगाया था। ऐसी जनगणना मोदी की बीजेपी समर्थित बिहार की नीतीश सरकार पहले ही करवा चुकी है। बिहार में सामाजिक आर्थिक जनगणना के समर्थक प्रधानमंत्री मोदी ने देश भर में ऐसी जनगणना के कांग्रेस के वायदे का अनेक बेबुनियाद आरोप लगाते हुए डटकर विरोध किया।
इसके बावजूद बांसवाड़ा के मतदाता ने वहां उनके दलबदलू उम्मीदवार महेंद्रजीत सिंह मालवीय को एक लाख से अधिक वोट से हरा कर मुंहतोड़ जवाब दिया। बांसवाड़ा से इंडिया समर्थित बाप पार्टी के प्रत्याशी राजकुमार रोत चुनाव जीत कर लोकसभा में पहुंचे हैं। बहरहाल, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा सोने पर आयात शुल्क एवं कृषि उपकर में कुल नौ फीसद कटौती से करोड़ों गृहिणियों के घरों एवं बैंकों के लाॅकर में रखे सोने के जेवरात, गिन्नियों तथा बिस्कुटों और सोने के थोक निवेशकों को 10 लाख करोड़ रुपए का जबरदस्त नुकसान हुआ है। बजट के बाद से सोने का खुदरा दाम 6000 रुपए प्रति तोला से अधिक गिर चुका है। घरों, बैंक लॉकरों एवं मंदिरों आदि धर्मादा संस्थाओं में देश में 30,000 टन से भी अधिक सोना जमा है। इसमें रुपए की गारंटी के लिए भारतीय रिजर्व बैंक में रखा सोना भी शामिल है। इस प्रकार भारत में दुनिया में सोने की कुल मात्रा का 11 फीसद सोना है। भारतीय घरों में सोने को महिलाओं द्वारा अपने शौक एवं आड़े वक्त के लिए खरीदा तथा धर्मादा संस्थाओं में श्रद्धालुओं द्वारा भगवान के नाम पर दान किया जाता है। भारतीय घरों में मौजूद सोने की मात्रा अमेरिका, जर्मनी, स्विट्जरलैंड एवं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में जमा कुल सोने से कहीं अधिक है।
कॉरपोरेट मीडिया बजट में सोने के आयात शुल्क एवं कृषि उपकर में कटौती को सोने के खुदरा दाम घटने के रूप में ही प्रचारित कर रहा है। उसके अनुसार सोने के नए गहनों, गिन्नियों, बिस्कुटों एवं सिल्लियों के खरीदारों को इसमें क़रीब 6000 रुपए प्रति तोला फायदा हो रहा है। इसीलिए केंद्र की एनडीए सरकार और प्रधानमंत्री मोदी भी आश्वस्त हैं वरना अब तक वे और उनकी सरकार के विभिन्न अवयव इस बारे में न जाने कितने स्पष्टीकरण दे चुके होते। फिर भी सच यही है कि गहने गढ़ने वाले निर्यातकों के लिए सस्ते किए गए सोने का देश की गृहिणियों को अपने संचित सोने पर भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। दूसरी तरफ सर्राफों का तर्क है कि निर्यात शुल्क घटाने की मांग वो लंबे अरसे से कर रहे हैं क्योंकि सोने के दाम 75 हजार रुपए प्रति तोला पार हो जाने के कारण बाजार में मांग मामूली रह गई थी।
भारत में सालाना 700 टन सोने के आयात पर औसतन 40 अरब डाॅलर खर्च होते हैं। इसमें से अधिकतर शादी-ब्याह में गृहिणियों द्वारा और गहने के निर्माताओं द्वारा खरीदा जाता है। इसके अलावा सोने में थोक निवेश करने वाले व्यापारियों में भी सोने की खासी मांग है। सोने की तरह ही घरों में
आगामी त्योहारी सीजन में मांग बढ़ने, अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव, डाॅलर के कमजोर होने, भू-राजनैतिक जोखिम जैसे युद्ध अथवा प्राकृतिक आपदा आदि एवं केंद्रीय बैंक की नीतियाँ भी सोने के दाम बढ़ा सकती है। कुल मिलाकर सोने पर आयात शुल्क घटाए जाने से गृहिणियों को अपने मंगलसूत्र एवं जमा सोने पर प्रति तोला करीब 6000 रुपए का नुकसान होने की सूचना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं बीजेपी तथा सहयोगी दलों को हरियाणा, महाराष्ट्र एवं झारखंड के विधानसभा चुनाव में नुकसान पहुंचा सकती है।
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