उसी झोंक में चूंकि खुदरा निवेशकों ने भी महंगे शेयरों में अपनी पूंजी का निवेश कर दिया इसलिए चार जून को जब आम चुनाव के असल नतीजे आए और सुबह से ही बीजेपी पिछड़ने तथा कांग्रेस सहित विपक्षी इंडिया गठबंधन के घटक दलों को मतदाता द्वारा डटकर वोट देने का रूझान सामने आया तो शेयर बाजार औंधे मुंह गिर पड़ा। उसकी चोट जाहिर है कि खुदरा निवेशकों को ही लगी और उन्हें जबरदस्त घाटा झेलना पड़ा। अनेक खुदरा निवेशकों ने तो कर्ज लेकर शेयर बाजार में पैसा लगाया था मगर बीजेपी की हार से मंदी आने पर वो लोग बरबाद ही हो गए।
इसी तरह काॅरपोरेट टैक्स को घटाकर करीब 25 फीसद कर देने और व्यक्तिगत आयकर को 30 प्रतिशत पर ही रहने देने की विसंगति भी वित्तमंत्री सीतारमण के लिए बड़ी चुनौती है। काॅरपोरेट टैक्स की दरों में ऐतिहासिक पांच फीसद की कटौती के पीछे प्रधानमंत्री मोदी का तर्क था कि इससे पूंजीपतियों को देश में ही नई परियोजनाओं में निजी निवेश के लिए अधिक पूंजी उपलब्ध हो पाएगी और उससे रोजगार बढ़ेंगे। उनके इस दावे का मौजूदा आर्थिक सर्वेक्षण सरासर खंडन करते हुए काॅरपोरेट मुनाफा बढ़ने के बावजूद पूंजी निवेश में वांछित तेजी नहीं आने पर चिंता जता रहा है। इससे विपक्ष का यह आरोप भी सही सिद्ध हो गया कि मोदी सरकार ने पूंजीपतियों की जेबों को भरने की नीतियां बनाई हैं और नोटबंदी, अनाप-शनाप जीएसटी दर लागू करने, कोविड-लाॅकडाउन से फैली बेकारी एवं गरीबी दूर करने की प्रधानमंत्री को कतई चिंता नहीं हे।
ताज्जुब ये कि कोविड से अपनी अर्थव्यवस्था को लगे तगड़े झटके के बाद घोषित पूंजीवादी अमेरिका तक ने जब मोटी आमदनी वालों पर अतिरिक्त टैक्स लगाया तब भी मोदी सरकार ने देश में कोविड के जानलेवा दौर में भी मोटा मुनाफा कमाने वाले देसी पूंजीपतियों पर कोई अतिरिक्त कर लगाने के बजाए ऑनालाइन खुदरा व्यापार में उन्हें अपने पांव पसारने के लिए विदेशी पूंजी की मोटी रकम लाने में मदद की। इस प्रकार आर्थिक सर्वेक्षण दुनिया की सबसे तेज बढ़ती भारतीय अर्थवयवस्था के भीतर से खोखले बीजेपी-एनडीए सरकारों के दावे का सरासर भंडा फोड़ रहा है।
सर्वेक्षण में महंगाई से लेकर बेरोजगारी और पूंजीनिर्माण से लेकर व्यापार-उद्योागों में अभूतपूर्व तेजी आने तक के मनमाने आंकड़े पेश किए गए हैं। इन आंकड़ों का देश में महंगाई और बेरोजगारी की जमीनी मार झेलने की हकीकत बयां करने के बजाय उस पर जीएसटी की उगाही बढ़ने, करदाताओं की संख्या बढ़ने और जीडीपी की दर चालू माली साल में 8.2 फीसद रहने के दावों से चाशनी चढ़ाने से अधिक ताल्लुक है।
जाहिर है कि इसी साल महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनावों के परिप्रेक्ष्य में बीजेपी इसे लागू करने में तेजी दिखाएगी। इसलिए इसे लागू करने के तौर-तरीके बजट में नमूदार हो सकते हैं। इसी तरह निर्यात के लिए कच्चा माल सस्ता करने के लिए जीएसटी और सीमा शुल्क घटा कर फार्मा, एवं पेपर मिलों को फायदा दिया जा सकता है। निर्यात के नए क्षेत्र स्थापित करने का सुझाव भी सर्वेक्षण से जाहिर होता है।
इसी तरह पर्यावरण स्वच्छ रखने के उपायों के तहत बिजली से चार्ज होकर चलने और इलेक्ट्रिक व्हीकल्स कहलाने वाले बैट्रीचालित वाहनों के उत्पादन और प्रयोग को प्रोत्साहित करने के उपाय बढ़ाने की मंशा का भी सर्वेक्षण से इशारा मिलता है। आमतौर पर ईवी पुकारे जाने वाले इन वाहनों की खरीद पर दी जाने वाली मौजूदा रियायतें जारी रखने तथा अगले पांच वर्ष के लिए इनके प्रयोग को प्रोत्साहित करने के लिए स्पष्ट नीति की घोषणा की आवश्यकता भी सर्वेक्षण रेखांकित कर रहा है।
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