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आर्थिक तरक्की के खोखले दावों का भंडाफोड़

आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार चालू वित वर्ष 2023-24 में अर्थव्यवस्था में जो 8.2 फीसद वृद्धि का दावा किया गया है वो अधिकतर रोजगार रहित रही है। सर्वेक्षण ने इस बात पर बाकायदे चिंता जताई है कि चालू वित वर्ष में काॅरपोरेट सेक्टर का मुनाफा तो अच्छा-खासा बढ़ा है मगर उसके मुकाबले पूंजी निवेश की दर बहुत कम रही। इससे साफ है कि विपक्ष का यह आरोप कि मोदी सरकार पूंजीपति परस्त है और अर्थव्यवस्था में देश की आधी से अधिक 15 से 35 वर्ष के बीच विशाल युवा आबादी को रोजगार देने के मौके नगण्य है। इससे बेरोजगारी की ताजा दर सीएमआईई के अनुसार नौ फीसद से अधिक है। हालांकि सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार बेरोजगारी की दर चार फीसद से नीचे ही है जबकि उसी में नए रोजगार पैदा करने को बड़ी चुनौती बताया गया है। सर्वेक्षण ही इंगित कर रहा है कि देश में युवा हाथों को रोजगार देने के लिए सालाना कम से 70 लाख नए मौके पैदा करना आवश्यक है।
इसी तरह सर्वेक्षण में शेयर बाजार में सूक्ष्म पूंजी निवेश करने वाले खुदरा निवेशकों के हितरक्षण का सवाल उठाते हुए चिंता जताई गई है। इसके लिए सेबी की ओर से कुछ नए उपाय किए जाने चाहिए। जरा याद कीजिए कि एक्जिटपोल के फर्जी नतीजे दिखाकर शेयर बाजार में अवांछित तेजी लाकर तेजड़ियों द्वारा करीब 16 लाख करोड़ रूपए बटोरने और बीजेपी की हार के असली नतीजे आने पर खुदरा निवेशकों की पूंजी बड़े पैमाने पर डूबने के पीछे सोची-समझा साजिश का आरोप लगाते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने संयुक्त संसदीय समिति से जांच की मांग की थी।
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राहुल गांधी का आरोप था कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अपने भाषण में लगातार तीसरी बार बीजेपी को स्पष्ट बहुमत के बूते फिर से मोदी सरकार बनने का दावा करते हुए बाकायदे शेयर बाजार में अभूतपूर्व उछाल आने का दावा किया था। दस से अधिक एक्जिट पोल ने नतीजे चूंकि अमित शाह के दावों अनुरूप ही दिखाए थे इसलिए अगले दिन शेयर बाजार में वास्तव में जबरदस्त उछाल आया और तेजड़ियों ने जमकर चांदी काटी। 
उसी झोंक में चूंकि खुदरा निवेशकों ने भी महंगे शेयरों में अपनी पूंजी का निवेश कर दिया इसलिए चार जून को जब आम चुनाव के असल नतीजे आए और सुबह से ही बीजेपी पिछड़ने तथा कांग्रेस सहित विपक्षी इंडिया गठबंधन के घटक दलों को मतदाता द्वारा डटकर वोट देने का रूझान सामने आया तो शेयर बाजार औंधे मुंह गिर पड़ा। उसकी चोट जाहिर है कि खुदरा निवेशकों को ही लगी और उन्हें जबरदस्त घाटा झेलना पड़ा। अनेक खुदरा निवेशकों ने तो कर्ज लेकर शेयर बाजार में पैसा लगाया था मगर बीजेपी की हार से मंदी आने पर वो लोग बरबाद ही हो गए।
अब आर्थिक सर्वेक्षण में खुदरा निवेशकों के हितों की रक्षा की पैरवी विपक्ष की आशंकाओं को सटीक साबित कर रही है। सर्वेक्षण में नमूदार देश की आधी पूंजी के महज दो प्रतिशत आबादी के हाथों में सीमित हो जाने के तथ्य से समाज में पिछले दस साल के मोदी शासन में बढ़ी आर्थिक विषमता का विपक्ष का आरोप भी सही साबित हो रहा है। क्या चुनाव में बहुमत खोकर मतदाता की सीख मानकर मोदी नीत एनडीए सरकार इस बजट सहित अगले पांच साल में आर्थिक विषमता की खाई को पाटने  के लिए पूंजीपतियों पर कोई अतिरिक्त कर लगाएगी। 
इसी तरह काॅरपोरेट टैक्स को घटाकर करीब 25 फीसद कर देने और व्यक्तिगत आयकर को 30 प्रतिशत पर ही रहने देने की विसंगति भी वित्तमंत्री सीतारमण के लिए बड़ी चुनौती है। काॅरपोरेट टैक्स की दरों में ऐतिहासिक पांच फीसद की कटौती के पीछे प्रधानमंत्री मोदी का तर्क था कि इससे पूंजीपतियों को देश में ही नई परियोजनाओं में निजी निवेश के लिए अधिक पूंजी उपलब्ध हो पाएगी और उससे रोजगार बढ़ेंगे। उनके इस दावे का मौजूदा आर्थिक सर्वेक्षण सरासर खंडन करते हुए काॅरपोरेट मुनाफा बढ़ने के बावजूद पूंजी निवेश में वांछित तेजी नहीं आने पर चिंता जता रहा है। इससे विपक्ष का यह आरोप भी सही सिद्ध हो गया कि मोदी सरकार ने पूंजीपतियों की जेबों को भरने की नीतियां बनाई हैं और नोटबंदी, अनाप-शनाप जीएसटी दर लागू करने, कोविड-लाॅकडाउन से फैली बेकारी एवं गरीबी दूर करने की प्रधानमंत्री को कतई चिंता नहीं हे।

ताज्जुब ये कि कोविड से अपनी अर्थव्यवस्था को लगे तगड़े झटके के बाद घोषित पूंजीवादी अमेरिका तक ने जब मोटी आमदनी वालों पर अतिरिक्त टैक्स लगाया तब भी मोदी सरकार ने देश में कोविड के जानलेवा दौर में भी मोटा मुनाफा कमाने वाले देसी पूंजीपतियों पर कोई अतिरिक्त कर लगाने के बजाए ऑनालाइन खुदरा व्यापार में उन्हें अपने पांव पसारने के लिए  विदेशी पूंजी की मोटी रकम लाने में मदद की। इस प्रकार आर्थिक सर्वेक्षण दुनिया की सबसे तेज बढ़ती भारतीय अर्थवयवस्था के भीतर से खोखले बीजेपी-एनडीए सरकारों के दावे  का सरासर भंडा फोड़ रहा है। 

सर्वेक्षण में महंगाई से लेकर बेरोजगारी और पूंजीनिर्माण से लेकर व्यापार-उद्योागों में अभूतपूर्व तेजी आने तक के मनमाने आंकड़े पेश किए गए हैं। इन आंकड़ों का देश में महंगाई और बेरोजगारी की जमीनी मार झेलने की हकीकत बयां करने के बजाय उस पर जीएसटी की उगाही बढ़ने, करदाताओं की संख्या बढ़ने और जीडीपी की दर चालू माली साल में 8.2 फीसद रहने के दावों से चाशनी चढ़ाने से अधिक ताल्लुक है।
अलबत्ता सर्वेक्षण में आयुष्मान योजना में सुधारात्मक उपायों की जरूरत बताई गई है। क्योंकि इसमें सूचीबद्ध 30,000 से अधिक अस्पतालों में इलाज के नाम पर हेराफेरी के अनेक मामले पकड़े गए है। फिलहाल 34 करोड़ से ज्यादा लोग इसके तहत पंजीकृत हैं। अब इनकी संख्या में करीब छह करोड़ का इजाफा होने की संभावना है क्योंकि बीजेपी ने साल 2024 के चुनावी घोषणापत्र में देश में 70 साल से अधिक उम्र वाले सभी बुजुर्गों को आयुष्मान योजना का लाभ देने का वायदा किया था।
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जाहिर है कि इसी साल महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनावों के परिप्रेक्ष्य में बीजेपी इसे लागू करने में तेजी दिखाएगी। इसलिए इसे लागू करने के तौर-तरीके बजट में नमूदार हो सकते हैं। इसी तरह निर्यात के लिए कच्चा माल सस्ता करने के लिए जीएसटी और सीमा शुल्क घटा कर फार्मा, एवं पेपर मिलों को फायदा दिया जा सकता है। निर्यात के नए क्षेत्र स्थापित करने का सुझाव भी सर्वेक्षण से जाहिर होता है। 

इसी तरह पर्यावरण स्वच्छ रखने के उपायों के तहत बिजली से चार्ज होकर चलने और इलेक्ट्रिक व्हीकल्स कहलाने वाले बैट्रीचालित वाहनों के उत्पादन और प्रयोग को प्रोत्साहित करने के उपाय बढ़ाने की मंशा का भी सर्वेक्षण से इशारा मिलता है। आमतौर पर ईवी पुकारे जाने वाले इन वाहनों की खरीद पर दी जाने वाली मौजूदा रियायतें जारी रखने तथा अगले पांच वर्ष के लिए इनके प्रयोग को प्रोत्साहित करने के लिए स्पष्ट नीति की घोषणा की आवश्यकता भी सर्वेक्षण रेखांकित कर रहा है।

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क़मर वहीद नक़वी
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