घाटे की फ़िक्र छोड़कर इस वक़्त सरकार को ख़र्च करना चाहिए। तमाम विद्वानों की यह बात तो वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने मान ली है। उन्होंने इतनी हिम्मत दिखाई है कि चालू वित्तवर्ष में न सिर्फ़ सरकार का घाटा यानी फिस्कल डेफिसिट साढ़े नौ परसेंट पहुँचने की बात खुलकर कबूल की बल्कि यह भी बताया कि अभी इस साल ही अस्सी हज़ार करोड़ रुपए का क़र्ज़ और लेना पड़ेगा। कुल मिलाकर सरकार इस साल 18.48 लाख करोड़ रुपए का कर्ज ले चुकी है। कोरोना काल में यह कोई आश्चर्य भी नहीं है। ऐसी आशंका थी। हालाँकि ज़्यादातर विद्वान मान रहे थे और अंदाजा लगा रहे थे कि यह आँकड़ा सात से आठ परसेंट के बीच रह सकता है। लेकिन संशोधित अनुमान में यह साढ़े नौ परसेंट तक पहुँच चुका है। अगले साल जब बजट आएगा तब ही शायद पता चले कि बीते साल का घाटा दरअसल रहा कितना। हालाँकि यहाँ यह साफ़ करना ज़रूरी है कि वित्तमंत्री ने इस बार घाटे में वो घाटे भी शामिल करके दिखा दिए हैं जिन्हें अब तक सरकारें छिपाकर रखती थीं या जिन्हें बैलेंस शीट से बाहर रखा जाता था।

सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी बेचकर पौने दो लाख करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य है और साथ ही दो सरकारी बैंक, एक सरकारी जनरल इंश्योरेंस कंपनी, अनेक सड़कें, बंदरगाह, एयरपोर्ट, पावरग्रिड कॉर्पोरेशन की बिजली लाइनें, रेलवे लाइनें और डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर बेचकर पैसे जुटाने का एलान भी किया गया है। सरकारी विभागों की खाली पड़ी ज़मीनों को बेचने के लिए एक एसपीवी बनाने का नया एलान भी है।