सरकार ने वित्त अधिनियम 2021 में संशोधन कर कर-मुक्त पीएफ कंट्रीब्यूशन की सीमा 2.50 लाख से बढ़ा कर पाँच लाख रुपए कर दी है। यह 1 अप्रैल 2021 से लागू होगा।
बजट से आम आदमी को कैसे होगा फायदा ? सरकार किस प्रकार से करेगी निजीकरण? इस बजट का असर कबतक दिखेगा? देखिए वरिष्ठ पत्रकार नीलू व्यास की ख़ास बातचीत मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमणियन के साथ। Satya Hindi
चारों तरफ धूम मची है कि वित्त मंत्री ने हिम्मत दिखाई, पॉपुलिस्ट या लोक लुभावन एलान करने के बजाय बड़े सुधारों पर ज़ोर दिया। आगे चलकर इससे आर्थिक तरक्क़ी रफ़्तार पकड़ेगी और तब नौजवानों को रोज़गार भी मिलेंगे और बाकी देश को फ़ायदे भी।
सरकार का मानना है कि अम्बानी (याने कॉरपोरेट घरानों) पर टैक्स लगाकर उस पैसे से ग़रीबों की स्थिति बेहतर करने की जगह सरकार को विकास के पहले दौर में ग़रीबों की निरपेक्ष ग़रीबी जैसे मौलिक सुविधाओं का अभाव ख़त्म करना होगा। उसके अनुसार सापेक्ष गरीबी (जो शुद्ध रूप से असामनता-जनित होती है) तो अमेरिका में भी है।
‘शताब्दी में ख़ास बजट’ कहकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने जो वित्त विधेयक पेश किया उसमें किसी क़िस्म के ग़रीब समर्थक, किसान समर्थक, महिला समर्थक और गांव समर्थक दिखावे की भी ज़रूरत नहीं दिखी। आख़िर क्या था बजट में।
तीन राज्य सरकारों ने बजट 2021 में लगाए गए कृषि अधिभार (एग्रीकल्चरल सेस) का विरोध करते हुए इसे संघीय ढाँचे के ख़िलाफ़ बताया है और कहा है कि इससे केंद्र-राज्य रिश्तों पर बुरा असर पड़ेगा।
सरकार ने बजट में एक बार फिर से ये सोचकर सरकारी संपत्तियों को बेचने का दाँव खेला है कि कोरोना की वज़ह से विरोध नहीं होगा, लेकिन ऐसा नहीं है। किसान आंदोलन की तरह विरोध का एक मोर्चा कर्मचारियों की ओर से भी खड़ा हो सकता है। पेश है जाने-माने अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार से वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की बातचीत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए संगठन स्वदेशी जागरण मंच ने कुछ सरकारी कंपनियों के निजीकरण करने के प्रस्ताव का ज़ोरदार शब्दों में विरोध किया है। उसने कहा है कि इन कंपनियों के कामकाज को सुधारने की ज़रूरत है न कि उन्हें बेच देने की।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में जो बजट पेश किया है, वह दिशाहीन और अवास्तविक है, हालांकि यह दावा किया गया है कि यह भारत को आत्मनिर्भर बना देगा।
बजट के बाद तो शेयर बाज़ार ने दो हज़ार पाइंट से ऊपर की जोरदार छलांग लगाई। इसकी क्या वजह हो सकती है? वजह एक नहीं अनेक हैं। सबसे बड़ी वजह तो है कि सरकार एक बड़ी सेल की तैयारी कर रही है।
सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी बेचकर पौने दो लाख करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य क्यों रखा गया है? सरकारी विभागों की खाली पड़ी ज़मीनों को बेचने के लिए एक एसपीवी बनाने का नया एलान क्यों किया गया?
निर्मला सीतारमण का बजट क्या वाकई ऐतिहासिक है ? क्या अर्थव्यवस्था में जान फूंकेगा ? क्या बेरोज़गारों को रोज़गार देगा ? क्या ग़रीब-मजदूर-किसान की हालत सुधरेगी !