हिम्मत की ज़रूरत थी, हिम्मत तो दिखाई गई है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने जिस अंदाज़ में बजट की शुरुआत की उससे ही साफ़ है कि सरकार कुछ कर गुज़रने के मूड में है। किस विकट परिस्थिति में हैं हम और कितनी बड़ी चुनौती है ऐसे में बजट बनाना, यह किसी से छिपा नहीं है। कोरोना के कहर और उससे पैदा हुए दर्द का ज़िक्र किया वित्तमंत्री ने। लेकिन साथ ही गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की वो कविता भी सुनाई जिससे अंधेरा रहते हुए ही सुबह की रौशनी देखनेवाले परिंदे का ज़िक्र होता है।

सरकार की मंशा बिना किसी पर फालतू बोझ डाले ज़रूरी ख़र्च करने की है यह तो साफ़ दिखता है। लेकिन इस वक़्त बाज़ार में मांग पैदा हो इसके लिए ज़रूरी था कि लोगों की जेब में पैसा आए और उसे ख़र्च करने का हौसला भी। इस बजट से यह कैसे हो पाएगा? और सबसे बड़ा सवाल यह है कि महंगाई पर इसका असर क्या होगा?
अब वक़्त है वो रौशनी दिखाने का और उस रौशनी को कोने-कोने तक पहुँचाने का। आज का सबसे बड़ा अंधेरा है कोरोना का डर और सेहत की चिंता। स्वास्थ्य सुविधाओं पर 2.23 लाख करोड़ रुपए का ख़र्च इससे मुक़ाबले के लिए एक अहम एलान है। पिछले साल से 137% ज़्यादा। सरकार का कुल ख़र्च भी बढ़ाकर चौंतीस लाख तिरासी हज़ार करोड़ रुपए पहुँचाया जा रहा है और उसमें से भी 5.54 लाख करोड़ रुपए कैपिटल एक्सपेंडिचर यानी नई संपत्ति बनाने पर ख़र्च होंगे यह ख़ुशख़बरी है।