loader

अर्थव्यवस्था की हालत ऐसी कि दिवाली से बेड़ा पार लगने की आस?

दुष्यंत कुमार की कुछ पक्तियां रह-रह कर याद आती हैं- 

‘न हो कमीज तो पाँवों से पेट ढक लेंगे, ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए’। 

जी हां, जिस तरह अर्थव्यवस्था की कमजोरियाँ रह-रहकर सामने आ जाती हैं और फिर दुनिया में सबसे तेज विकास और पाँच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने के दावे होते हैं (और सामान्य ढंग से उस पर विश्वास भी किया जाता है) वह बताता है कि सरकार के दावों और आंकड़ों को जाँचने परखने और अपने प्रत्यक्ष अनुभवों के आधार पर उन पर शक करने का काम आम लोगों ने ही नहीं, मीडिया ने भी छोड़ दिया है। सभी श्रद्धा-भाव से नत है- कमीज न हो तो पाँव से पेट ढककर भी संतुष्ट हैं। 

कई धनात्मक और ऋणात्मक सूचनाओं के बीच जब यह खबर आई कि कारों की बिक्री थमने लगी है और कंपनियां अपने उत्पाद पर भारी डिस्काउंट देकर अपना स्टॉक हल्का करना चाहती हैं तब भी किसी का ध्यान खास नहीं गया। डिस्काउंट दस दस लाख का है- जाहिर है कारें भी सत्तर अस्सी लाख की होंगी। फिर जब शेयर बाजार भहराकर गिरा तब भी कभी हिंडनबर्ग को विलेन बनाने की कोशिश की गई कभी अमेरिकी बैंकिंग नीति को। निर्यात में कमी की रिपोर्ट आती है तो यूरोप में मांग घटने और अमेरिका में व्यापार संबंधी बाड ऊंची करने को दोष दिया जाता है। करखनिया उत्पादन घटाने को भी खास परेशानी का कारण नहीं माना जाता।

ताज़ा ख़बरें

ऐसा नहीं है कि हर अर्थव्यवस्था हर समय एक ही दिशा में बढ़ती जाती है लेकिन जब तक उसके इन्डिकेटर सही काम कर रहे हों तब उनके आधार पर नीतिगत और प्रशासनिक बदलाव करके चीजों को सुधारने की कोशिश की जाती है। अपने यहाँ की मुश्किल कई गुना ज्यादा है क्योंकि बीते कुछ समय से आंकड़ों को बताने और छुपाने या सांख्यिकी विभाग द्वारा जारी होने के पहले सारे आंकड़ों को सरकार की नजर से गुजारने की नीति ने काफी कुछ परदे में कर दिया है। यहां जनगणना से लेकर उपभोक्ता और रोजगार संबंधी सर्वेक्षणों की रिपोर्ट न आने जैसे मामले न भी गिनें तो काफी कुछ ऐसा है जो जानने की उत्सुकता रहती है या जो सही विश्लेषण में मुश्किल पैदा करता है। जैसे पिछले काफी समय से यह अंदाजा लगने लगा था कि उपभोक्ता वस्तुओं की मांग में कमी आई है। 

हमारे घरेलू बचत में गिरावट और कर्ज में दोगुनी वृद्धि का व्यावहारिक मतलब यही है कि सामान्य आदमी अपने उपभोग में कमी करके इस स्थिति से निपटना चाहता है। प्याज/टमाटर की महंगाई के समय वित्त मंत्री भी इनकी कम खपत का सुझाव देती ही हैं। अगर इसके ऊपर सब्जियों और अनाज की महंगाई को जोड़ दें तो साफ लगेगा कि सिर्फ उपभोक्ता वस्तुओं की खरीद में ही नहीं, पेट काटने का दौर भी शुरू हो चुका है।

वित्त मंत्रालय द्वारा जारी नवीनतम आँकड़े बताते हैं कि अर्थव्यवस्था में मंदी या सुस्ती का प्रवेश हो चुका है। आंकड़े बताते हैं कि गांवों में तो उपभोक्ता वस्तुओं की मांग बनी हुई है लेकिन शहरी मांग घटती जा रही है और इसका उत्पादन पर असर दिखाई देता है। कार बाजार उसका एक उदाहरण है। 
पिछली तिमाही में विकास दर भी गिरी है। पिछले साल जीडीपी का विकास 7.8 फीसदी की दर से हुआ जबकि इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यह 6.7 फीसदी रह गया और दूसरी तिमाही में 6.5 फीसदी पर आ गया है।
अब लगता है कि रिजर्व बैंक द्वारा सात फीसदी के विकास का अनुमान पूरा होना मुश्किल होगा। इसकी दो बड़ी वजहें हैं। घरेलू मांग कम होने के साथ अलग-अलग कारणों से यूरोप और अमेरिका में हमारे सामान की मांग घटी है। दूसरी ओर, चीन द्वारा अपने यहाँ निवेश को बढ़ावा देने की नीतियाँ लागू होने के बाद से हमारे पूंजी बाजार से हजारों करोड़ रुपए की विदेशी पूंजी बाहर गई है। यह क्रम अभी जारी है और शेयर बाजार में उठा-पटक के लिए यही मुख्य कारण है। चीन अपने यहां नया उत्पादन यूनिट लगाने पर कई तरह के आकर्षक कदम उठा रहा है और वहां बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश हो रहा है। आज दुनिया में सबसे ज्यादा तेजी चीनी शेयर बाजार में दिख रही है।
अर्थतंत्र से और ख़बरें

पूंजी भागने का सीधा प्रभाव हमको अपने यहां सोने की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि, रुपए के मूल्य में कमी और बाजार की गिरावट में दिखाई देती है। अगर मांग न होगी तो करखनिया उत्पादन भी गिरेगा और नई उत्पादक इकाइयों का लगाना मुश्किल होता जाएगा। जो कारखाने चल रहे हैं उनके वार्षिक कारोबार और मुनाफे की रिपोर्ट भी इसी गिरावट का संकेत देती है। जिन 194 लिस्टेड कंपनियों ने अपने कारोबार और मुनाफे की रिपोर्ट सितंबर तक दी है उनके मुनाफे में छह फीसदी की कमी आई है। पिछले वित्त वर्ष में यह गिरावट और ज्यादा थी। महंगाई की दर से काफी कम दर पर (एक फीसदी से भी कम) मजदूरों की मजदूरी बढ़ी है। जाहिर है इसका मांग पर असर होगा ही।

हमारी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण देश में चाहे जो दावे करती हों पर पिछले दिनों जब वे विश्व बैंक-आईएमएफ़ की वार्षिक बैठक में गईं तो वहां उन्होंने यूरोप-अमेरिका में बढ़ते संरक्षणवाद की शिकायत करने के साथ उन्होंने अर्थव्यवस्था के बदतर होने की शिकायत की और सुधार की उम्मीद का दौर लंबा खींचने की भविष्यवाणी भी कर दी। रिजर्व बैंक भी मानता है कि खाद्य पदार्थों की महंगाई चिंताजनक है और इसी के चलते वह हाल फिलहाल इन्टरेस्ट रेट में कटौती नहीं कर सकता। पर अर्थव्यवस्था पर नज़र रखने वाले उसके समेत सभी जानकार मानते हैं कि हमारे लिए तत्काल दो चीजें उद्धारक बन सकती हैं। चीन से दोस्ती की आर्थिक वजहें हैं लेकिन पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत तत्काल राहत देने के साथ यह भी संकेत देती है कि वह आगे के संकट में आग में घी डालने नहीं जा रही है। पर बाजार के जानकार लोग उससे भी ज्यादा दीपावली और त्यौहार के मौसम में मांग और खरीद बढ़ाने से अर्थव्यवस्था में जान आने की आस लगाए बैठे हैं। खेती किसानी, गाँव देहात सारी उपेक्षा के बावजूद अगर अर्थव्यवस्था को टिकाने वाला बना हुआ है तो लक्ष्मी जी की कृपया पर निर्भरता भी सारे बड़े-बड़े दावों की पोल खोलता है।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
अरविंद मोहन
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

अर्थतंत्र से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें