कोरोना और लॉकडाउन की मार से उबर रही अर्थव्यवस्था को जिस रफ़्तार से बढ़ने का अनुमान लगाया गया था उससे भी विकास दर कम रही है। तीसरी तिमाही की विकास दर तो कम रही ही, ओमिक्रॉन के असर से चौथी तिमाही की वृद्धि दर कम रहने का अनुमान लगाया गया है। लेकिन इस बीच यूक्रेन संकट आ गया है और इसका भी असर पड़ना तय माना जा रहा है। ऐसा इसलिए कि दुनिया के कई देश रूस पर प्रतिबंध लगा रहे हैं और इसके बदले में रूस भी कुछ ऐसा ही रुख अपना रहा है। क्रूड ऑयल की क़ीमतें बढ़ रही हैं और इसका असर डीजल-पेट्रोल के दामों पर भी पड़ेगा। तो सवाल है कि आख़िर किस हद तक इसका प्रभाव पड़ने का अंदेशा है?
इसका असर क्या हो सकता है, इसका अंदाज़ा मौजूदा विकास दर से भी लगाया जा सकता है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय यानी एनएसओ द्वारा सोमवार को जारी राष्ट्रीय आय के दूसरे अग्रिम अनुमानों से पता चलता है कि भारत की जीडीपी चालू वित्त वर्ष में 8.9 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। यह पहले के 9.2 प्रतिशत के अनुमान से काफ़ी कम है। एनएसओ ने 9.2 फ़ीसदी का यह अनुमान जनवरी में ही जारी किया था। तब तो भारतीय रिज़र्व बैंक ने 9.5 फ़ीसदी का अनुमान लगाया था।
अनुमान घटाए जाने का सबसे बड़ा कारण तो यह है कि अक्टूबर-दिसंबर तिमाही के लिए सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 5.4 फ़ीसदी ही रही है।
जीडीपी की ऐसी हालत के लिए सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार जो क्षेत्र हैं उसमें निर्माण क्षेत्र भी शामिल है। निर्माण क्षेत्र की विकास दर नेगेटिव रही है और यह -2.8 प्रतिशत दर्ज गई गई। यानी निर्माण क्षेत्र सिकुड़ गया। विनिर्माण क्षेत्र में 0.2 प्रतिशत की मामूली वृद्धि हुई है।
आँकड़ों से पता चलता है कि आठ बुनियादी ढांचा क्षेत्रों में वृद्धि भी जनवरी में पिछले महीने के 4.1% से घटकर 3.7% हो गई है। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में आठ प्रमुख उद्योगों की भागीदारी 40.27% है।
चौथी तिमाही के लिए 4.8 प्रतिशत की वृद्धि दर मानकर ही इस पूरे वित्त वर्ष के लिए 8.9 प्रतिशत जीडीपी का अनुमान लगाया गया है।
तीसरी तिमाही में वृद्धि दर 5.4 फ़ीसदी रहने का अनुमान है। इसका मतलब है कि आगे मंदी का संकेत है। कोविड प्रतिबंधों का प्रभाव आर्थिक गति पर प्रतिबिंबित होता है। मौजूदा समय में यह असर ओमिक्रॉन वैरिएंट के आने के बाद हुआ है। ओमिक्रॉन वैरिएंट के बाद लगाए गए प्रतिबंधों के कारण आर्थिक गतिविधियाँ बाधित हुई हैं। अर्थशास्त्रियों ने कहा कि पूरा असर चौथी तिमाही के आंकड़ों में दिखेगा। लेकिन अब नये वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रैल-जून में जीडीपी 20.3 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है।
अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेन्सी फ़िच रेटिंग्स ने भी अगले साल के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान 10.3 प्रतिशत कर दिया है। फ़िच रेटिंग्स ने पहले यह भी अनुमान लगाया था कि मौजूदा वित्तीय वर्ष में भारत के आर्थिक विकास की दर कुल मिला कर 8.4 प्रतिशत होगी। उसका यह अनुमान भी पहले के अनुमान से कम है।
अब जब एक महीने में नया वित्त वर्ष शुरू होने वाला है तब यूक्रेन संकट आ गया है। रूस ने यूक्रेन पर हमला शुरू किया है। दोनों देशों में संघर्ष के बीच अब नाटो और यूरोपीय देश रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा रहे हैं। रूसी बैंकों का लेनदेन प्रभावित हुआ है। दुनिया भर के बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थाओं से लेनदेन को आसान करने वाले स्विफ्ट सिस्टम तक रूस की पहुँच को रोक दिया गया है। रूस भी इसके विरोध में क़दम उठा रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल का दाम अब लगातार बढ़ता जा रहा है। अब जाहिर है इसका असर रूस पर तो पड़ेगा ही, दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएँ भी प्रभावित होंगी। इससे भारत अछूता नहीं रहेगा।
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