रस्सी जल गई मगर ऐंठ नहीं गई। तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार जिस तरह से व्यवहार कर रही है, यह मुहावरा उसे सटीक ढंग से प्रतिबिंबित करता है। एकतरफा फ़ैसले लेने और सर्वज्ञ होने का अहंकार उनमें ज्यों का त्यों है। किसानों से संवाद का रास्ता दस दिन बाद भी उन्होंने नहीं खोला है।
मोदी जी की तपस्या में ये कमी रह गई...
- देशकाल
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- 28 Nov, 2021

सच तो ये है कि मोदी का तिलिस्म अब काफी हद तक टूट चुका है। वे उनमें से कोई वादा पूरा नहीं कर पाए, जिन्हें करके सत्ता में आए थे। बल्कि सच तो ये है कि वे बार-बार फेल हुए हैं और उन्होंने समस्याओं का अंबार लगा दिया है। इसलिए जब कभी वे टीवी पर आते हैं तो लोग खुश नहीं होते, भयभीत होते हैं।
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर अचानक प्रकट होकर किसानों से घर लौट जाने के लिए ज़रूर कह रहे हैं, मगर उनके चेहरे पर भी सरकार की हठधर्मिता पढ़ी जा सकती है। इतने बड़े आंदोलन का सामना करने के बाद किसी का भी सत्ता का मद उतर जाना चाहिए, मगर ये परिवर्तन सरकार में दिख ही नहीं रहा है।