बाबूलाल मरांडी
बीजेपी - धनवार
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कल्पना सोरेन
जेएमएम - गांडेय
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सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि एमसीडी मेयर के चुनाव में मनोनीत पार्षदों को वोट देने का कोई अधिकार नहीं है। एमसीडी संविधान में इसकी बहुत स्पष्ट व्याख्या है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने सोमवार को यह टिप्पणी अभी मौखिक की है। कोई फैसला नहीं सुनाया है। इस मामले की सुनवाई गुरुवार 16 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दी गई है।
इस खबर को आगे बताने से पहले यह जान लें कि मेयर चुनाव के लिए अब तक एमसीडी सदन की तीन बैठकें हो चुकी हैं लेकिन भारी हंगामे के बीच हर बार बैठक टाल दी गई और चुनाव नहीं हो सका। सदन की बैठक 16 फरवरी यानी गुरुवार को बुलाई गई थी और एक बार मेयर चुनाव फिर से कराने की कोशिश की जाती। लेकिन नए हालात में मेयर चुनाव अब 16 फरवरी को नहीं होगा। दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने एमसीडी संविधान और नियमों को पलटते हुए खुद के द्वारा चुने गए दस एल्डरमैन (पार्षद) को मेयर चुनाव में मतदान का अधिकार दे दिया। इतना ही नहीं दिल्ली के एलजी ने मेयर चुनाव कराने के लिए बीजेपी पार्षद सत्य शर्मा को पीठासीन अधिकारी नियुक्त कर दिया। एमसीडी में हालांकि आम आदमी पार्टी का बहुमत है।
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मनोनीत सदस्य चुनावी प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकते। इस बारे में संवैधानिक प्रावधान बहुत साफ हैं।
- चीफ जस्टिस, सुप्रीम कोर्ट, 13 फरवरी, 2023 दिल्ली मेयर चुनाव केस में मौखिक टिप्पणी सोर्सः लाइव लॉ
नगर निगम चुनाव हुए दो महीने बीत चुके हैं, जिसमें आम आदमी पार्टी (आप) ने 250 में से 134 सीटें जीतकर बीजेपी के 15 साल के शासन का अंत कर दिया, लेकिन दिल्ली को अभी तक मेयर नहीं मिला है।
विवाद की जड़ क्या हैः विवाद की जड़ 10 मनोनीत पार्षद हैं, जिन्हें एलजी ने मतदान की अनुमति दी है। पिछली तीन बैठकों में उपराज्यपाल वीके सक्सेना द्वारा नामित 10 दिल्ली पार्षदों को मतदान की अनुमति देने पर हंगामा हो रहा है। हालांकि एलजी के नामित पार्षदों को एमसीडी में वोट देने की अनुमति कभी नहीं रही। लेकिन एलजी ने अब उस पुराने फैसले को पलटते हुए दस पार्षदों को नामित किया और उन्हें वोटिंग की भी अनुमति दी। हालांकि एमसीडी सदन में आप का बहुमत है। लेकिन बीजेपी हर हालत में दिल्ली में अपना मेयर चाहती है।
नगर निगम चुनाव हुए दो महीने बीत चुके हैं, जिसमें आम आदमी पार्टी (आप) ने 250 में से 134 सीटें जीतकर बीजेपी के 15 साल के शासन का अंत कर दिया, लेकिन दिल्ली को अभी तक मेयर नहीं मिला है। एमसीडी अधिनियम, 1957 के अनुसार, महापौर और उप महापौर का चुनाव निकाय चुनावों के बाद होने वाले पहले सदन में होता है।
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