दिल्ली दंगों की जाँच कर रही पुलिस जिस तरह छात्रों और एक्टिविस्ट के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर रही है, उससे भारतीय राज्य उत्पीड़न की अंधेरी रात में प्रवेश कर रहा है। दंगा गंभीर मामला है। दंगों में शामिल हर व्यक्ति की पहचान पूरी विश्वसनीयता से होनी चाहिए और उसे क़ानून का सामना करना चाहिए। पर हम इसके बदले देख रहे हैं कि सिविल सोसाइटी को कुचलने की सोची समझी और योजनाबद्ध रणनीति है। यदि हमें आज़ादी बचानी है तो यह समझना होगा कि दिल्ली में जो कुछ हो रहा है, उसमें क्या दाँव पर लगा हुआ है।