प्रसिद्ध चिन्तक प्रताप भानु मेहता ने अपने हालिया लेख में इस बात पर चिन्ता जताई है कि धार्मिक जुलूसों की आड़ में देश किस तरफ बढ़ रहा है। लेकिन उन्होंने यह भी कहा है कि साम्प्रदायिकता पर लिखना अब फिजूल बात हो गई है। वो चिन्तित हैं कि विचाराधारत्मक हिंसा का मुकाबला करने कोई सामने नहीं आ रहा है।
कृषि क़ानूनों पर किसान आन्दोलन के मामले में सुप्रमी कोर्ट निष्पक्षता की भाषा बोलता है, पक्षपात से ऊपर होने का दावा करता है, पर सामान्य राजनीतिक आचार व्यवहार को भंग करने की कोशिश करता है। बता रहे हैं लेखक प्रताप भानु मेहता।
लेखक व बुद्धीजीवी प्रताप भानु मेहता ने भारतीय न्यायपालिका के मौजूदा संदर्भ में लोकतांत्रिक बर्बरता का मुद्दा उठाते हुए कहा है कि हालांकि सुप्रीम कोर्ट कभी भी संपूर्ण नहीं रहा, पर वह अब न्यायिक बर्बरता की ओर बढ़ रहा है। क्या है मामला, पढ़ें यह लेख।
दिल्ली दंगों की जाँच कर रही पुलिस जिस तरह छात्रों और एक्टिविस्ट के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर रही है, उससे भारतीय राज्य उत्पीड़न की अंधेरी रात में प्रवेश कर रहा है।