जिस किसी ने कभी भी डूबकर रामचरितमानस पढ़ा होगा, उसने सुंदरकाण्ड के उस एक क्षण की विशिष्ट मार्मिकता को ज़रूर रेखांकित किया होगा जब हनुमान सीता से मिलते हैं। उसके पहले तो कहानी विपत्ति की ओर भागी जा रही है। सीता का अपहरण हो चुका है। भग्न-हृदय राम अपने ही बारे में आश्वस्त नहीं हैं। लेकिन उस क्षण जब हनुमान सीता से मिलते हैं, वहाँ से यह महाकाव्य करवट लेता है, एक आत्मविश्वास आता है कि चीजें ठीक हो जाएँगी। हनुमान पेड़ से राम की अँगूठी गिराते हैं। सीता के मन में विरोधाभासी भाव आते हैं : अँगूठी को पहचान लेने की ख़ुशी है और भय इस बात का है कि आखिर इसका अर्थ क्या है? तुलसीदास लिखते हैं : हर्ष विषाद ह्रदय अकुलानी. सीता कई चीजें सोच रही हैं। यकायक हनुमान की आश्वस्ति प्रकट होती है जब हनुमान अपना परिचय देते हैं। सभी सांगीतिक प्रस्तुतियों में, चाहे वे छन्नूलाल मिश्र की हों या अभी तक कम आँकी गयी मुकेश की प्रस्तुति, उसमें यह बात ज़रूर आती है : हनुमान ने शहद की तरह मीठे वचन कहे – “मधुर वचन बोले हनुमाना”. आप यहाँ पर थम जाते हैं। इसकी शक्ति केवल सरल कविता भर नहीं है, वह जादुई शांति है जो यह पंक्ति पैदा करती है और यह ऐसा दुर्दमनीय प्रभाव है जिससे मजाल है कि आप बाहर निकल पाएँ। एक क्षण के लिए ही सही आप आश्वस्ति और आनन्द से सरोबार हो जाते हैं।
हिंसा की विचारधारा करेगी सर्वनाश?
- विचार
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- 29 Mar, 2025

प्रसिद्ध चिन्तक प्रताप भानु मेहता ने अपने हालिया लेख में इस बात पर चिन्ता जताई है कि धार्मिक जुलूसों की आड़ में देश किस तरफ बढ़ रहा है। लेकिन उन्होंने यह भी कहा है कि साम्प्रदायिकता पर लिखना अब फिजूल बात हो गई है। वो चिन्तित हैं कि विचाराधारत्मक हिंसा का मुकाबला करने कोई सामने नहीं आ रहा है।
ताप भानु मेहता अशोक विश्वविद्यालय के उप-कुलपति हैं। वे देश के अत्यंत सम्मानित चिंतक और बुद्धिजीवी है।