मोदी सरकार के पहले सौ दिन सिर्फ़ सरकार के कार्यों और नीतियों का वर्णन नहीं है। मौजूदा सरकार का स्वरूप क्या है? जब हम सौ दिनों का आकलन करते हैं तो दो राजनीतिक प्रवृत्तियाँ साफ़ तौर पर परिलक्षित होती हैं। एक, बुरी आर्थिक स्थिति के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी बेहद लोकप्रिय हैं। उनके कट्टर समर्थक भी इस बात से इत्तिफ़ाक़ रखते हैं कि वह एक ऐसे शख़्स के तौर पर उभरे हैं जिनको नज़रअंदाज़ करना नामुमकिन है। एक, ऐसी शख़्सियत जिन्होंने हमारे मानस को इस हद तक वशीभूत कर रखा है कि आलोचना भी उनके महत्व और उनकी कारगर पकड़ को ही रेखांकित करती है। उनकी विजय इसमें नहीं है कि वह क्या करते हैं बल्कि हम जो कुछ भी करते हैं वह उसके केंद्र में रहते हैं।
मोदी सरकार के 100 दिन: भ्रम या सच का सौदा?
- विचार
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- 11 Sep, 2019

हम किसी भ्रम के शिकार नहीं हैं। दरअसल हम ऐसा ही होना चाहते हैं। इस तर्क से मोदी की लोकप्रियता इसलिये नहीं है कि वह हमसे भ्रम का सौदा करते हैं; ऐसा इसलिये है कि वह हमारे बारे में सच का सौदा करते हैं। इन सौ दिनों से आप कितने चिंतित हैं वह इस बात से तय होगा कि आप इस विमर्श के किस तरफ़ हैं।
दो, लोकतंत्र पर सत्ता की अधिनायकवादी पकड़ अबाधित रूप से गतिमान है। लगभग सारे स्वतंत्र संस्थानों को कमज़ोर कर दिया गया है। अधिनायकवादी वर्चस्व के तमाम लक्षण और मज़बूत हुये हैं। सत्ता एक राष्ट्रीय कार्य को परिभाषित करती है और सभी को उसकी धुन पर मार्च करना होता है, आबादी को सभी सामाजिक और आर्थिक अंतरद्वंद्वों को दरकिनार कर राष्ट्रीय चेतना के स्थाई भाव में रहना होता है, विचार प्रवाह पर नियंत्रण को इस ध्येय की तरफ़ बढ़ाया जाता है जिसको लासेक कोलाकोवस्की ने एक दूसरे संदर्भ में समाज की मानसिक और नैतिक निर्वीर्यता यानी कमज़ोरी की संज्ञा दी है।
ताप भानु मेहता अशोक विश्वविद्यालय के उप-कुलपति हैं। वे देश के अत्यंत सम्मानित चिंतक और बुद्धिजीवी है।