पिछले कुछ सालों में जो उम्मीद बंधाई गई थी कि भारत एक संरचनात्मक बदलाव की तरफ बढ़ रहा है, एक आशातीत विकास की तरफ बढ़ रहा है, रोज़गार में बढ़ोतरी होगी, वे सारी उम्मीदें निराशा में बदल रही हैं। ऐसे में आने वाले चुनाव से लोगों की उम्मीदें बहुत कम हो गई हैं। ऐसा क्यों हो रहा है? मैं यह बात साफ़ करना चाहता हूँ कि हमारे लोकतंत्र के साथ कुछ हो रहा है जो हमारी लोकतांत्रिक अंतरात्मा को विक्षिप्त कर रहा है। हम एक आक्रोशित हृदय, क्षुद्र मानस और संकुचित मन वाला देश बनते जा रहे हैं। कई मायनों में लोकतंत्र उत्साह, विरलता, स्वतंत्रता और उत्सव का मंच होना चाहिए।
पिछले पाँच सालों में लोकतांत्रिक आत्मा को क्षत-विक्षत किया गया है
- विचार
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- 29 Mar, 2025

पत्रकारिता बहुत शक्तिशाली है। क्या आपको मालूम है कि सरकार क्या करेगी? सरकार आप जैसी ही हो जाएगी यानी सरकार ख़ुद पत्रकारिता जैसी हो जाएगी यानी पत्रकार बन जाएगी। भगवान विष्णु की तरह प्रेस के सौ हाथ होंगे और ये हाथ सब तरह के विचारों को प्रतिबिम्बित करेंगे।
ताप भानु मेहता अशोक विश्वविद्यालय के उप-कुलपति हैं। वे देश के अत्यंत सम्मानित चिंतक और बुद्धिजीवी है।