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दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया के पास 2019 में जब हिंसा हुई थी तो जेएनयू के छात्र शरजील इमाम पर हिंसा भड़काने का आरोप लगा था। उनके साथ छात्र कार्यकर्ता आसिफ इकबाल तन्हा, सफूरा जरगर सहित कई को आरोपी बनाया गया था। इन्हें तब ऐसे विलेन के तौर पर पेश किया गया था जैसे इनके ख़िलाफ़ पुख्ता सबूत हो। लेकिन क्या सच में ऐसा था? क़रीब चार साल से वह जो सजा भुगत रहे हैं उसके लिए उन पर कितने पुष्ट आरोप लगाए गए? दिल्ली की अदालत के फ़ैसले से इन सवालों के जवाब मिलते हैं।
शरजील इमाम के जिस भाषण को हिंसा के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाता रहा उसको लेकर दिल्ली की अदालत ने कहा कि असली गुनहगारों को पकड़ने के बजाए शरजील को बलि का बकरा बनाया गया। अदालत ने उस भाषण का ज़िक्र करते हुए यह भी कहा कि 'असहमति और कुछ नहीं बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का विस्तार है'।
यह मामला 2019 में जामिया मिलिया इस्लामिय के पास हुए प्रदर्शन से जुड़ा है। वे नागरिकता संशोधन विधेयक के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे थे। उस प्रदर्शन के मामले में एफ़आईआर दर्ज की गई थी। पुलिस ने कहा कि भीड़ ने सड़क पर यातायात रोक दिया था और वाहनों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया था। इसने दावा किया कि 13 दिसंबर, 2019 को इमाम के भाषण से दंगाई भड़के।
इसी मामले में अदालत ने कहा कि आरोपी व्यक्तियों को लंबे समय तक चले मुक़दमे की कठोरता से गुजरने देना हमारे देश की आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए अच्छा नहीं है।
अदालत ने पुलिस की कार्रवाई पर टिप्पणी करते हुए कहा कि इस तरह की पुलिस कार्रवाई नागरिकों की स्वतंत्रता के लिए हानिकारक है, जो शांतिपूर्वक इकट्ठा होने और विरोध करने के अपने मौलिक अधिकार का प्रयोग करना चाहते हैं।
कोर्ट ने पूछा, "हालाँकि, विवादास्पद सवाल बना हुआ है: क्या यहां आरोपी व्यक्ति उस तबाही में भाग लेने में प्रथम दृष्टया भी सहभागी थे? स्पष्ट जवाब है 'नहीं'। चार्जशीट और तीन सप्लीमेंट्री चार्जशीट के अवलोकन से सामने आए तथ्यों के आधार पर यह न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि पुलिस अपराध करने वाले वास्तविक अपराधियों को पकड़ने में असमर्थ थी, लेकिन निश्चित रूप से यहां व्यक्तियों को फँसाने और बलि का बकरा बनाने में कामयाब रही।
दरअसल, जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के पास 13 दिसंबर और 15 दिसंबर, 2019 को हुई हिंसा से जुड़े दो मामले हैं। पुलिस ने कहा था कि इमाम के भाषणों के कारण विरोध प्रदर्शन हुआ जो हिंसक हो गया था।
13 दिसंबर, 2019 को जामिया हिंसा मामले में अभियुक्तों को बरी करते हुए एएसजे अरुण वर्मा के आदेश में कहा गया है कि असहमति और कुछ नहीं, बल्कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 में निहित भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बहुमूल्य मौलिक अधिकार का विस्तार है।
आदेश में आगे कहा गया कि इसलिए यह एक अधिकार है जिसे कायम रखने की हमने शपथ ली है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार एएसजे ने अपने आदेश में महात्मा गांधी को उद्धृत किया: 'विवेक असहमति का स्रोत है। जब कोई बात हमारे विवेक के विरुद्ध होती है, तो हम उसे मानने से इंकार कर देते हैं। यह अवज्ञा कर्तव्य में निहित है। यह हमारा कर्तव्य बनता है कि हम अपनी अंतरात्मा के ख़िलाफ़ किसी भी चीज की अवज्ञा करें।'
एएसजे वर्मा ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के हालिया उस कथन का ज़िक्र किया जिसमें उन्होंने कहा, 'सवाल और असहमति की जगह ख़त्म होने से राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक सभी विकास के आधार नष्ट हो जाते हैं। इस लिहाज से असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व है।'
सीजेआई की टिप्पणी का हवाला देते हुए दिल्ली की अदालत ने कहा कि मतलब साफ़ है कि असहमति को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, न कि दबाया जाना चाहिए। हालांकि कोर्ट ने चेताया भी कि असहमति बिल्कुल शांतिपूर्ण होनी चाहिए और हिंसा में नहीं बदलनी चाहिए।
ऐसी टिप्पणी करते हुए ही साकेत जिला अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अरुण वर्मा ने शरजील इमाम, छात्र कार्यकर्ता आसिफ इकबाल तन्हा, सफूरा जरगर और आठ अन्य को आरोप मुक्त कर दिया। हालाँकि, इस मामले में एक व्यक्ति - मोहम्मद इलियास के खिलाफ आरोप तय किए गए। इस मामल में अब अगली सुनवाई 10 फरवरी को है।
यह पहला मामला है जिसमें शरजील इमाम को आरोपमुक्त किया गया है। हालाँकि, वह न्यायिक हिरासत में रहेंगे क्योंकि उन्हें दिल्ली दंगों से संबंधित ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम यानी यूएपीए मामले में जमानत नहीं मिली है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार शरजील के वकील अहमद इब्राहिम ने कहा, 'शरजील इमाम के खिलाफ कुल आठ प्राथमिकी दर्ज हैं। उन्हें दिल्ली दंगों के यूएपीए मामले और सीएए, एनआरसी के खिलाफ भाषण देने के लिए दिल्ली में दर्ज एक अन्य यूएपीए मामले में जमानत नहीं मिली है।'
इनके अलावा उन पर यूपी, अरुणाचल प्रदेश, असम और मणिपुर में दर्ज चार अन्य केस में भी मामला दर्ज किया गया है। ये मुक़दमे सीएए, एनआरसी के खिलाफ देश के विभिन्न हिस्सों में शरजील इमाम द्वारा दिए गए भाषणों के आधार पर दर्ज किए गए।
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