दिल्ली में बीजेपी पिछले पाँच चुनावों से लगातार हार रही है। 1998 से हार का जो सिलसिला शुरू हुआ है, अभी तक जारी है। कोई इसे बीजेपी का बनवास कहता है तो कोई कहता है कि बीजेपी ख़ुद ही अपने पाँवों पर कुल्हाड़ी मारती है। बात जो भी हो लेकिन बीजेपी के लिए पिछले 21 सालों से दिल्ली दूर है। हालाँकि यह भी इत्तिफ़ाक़ है कि जनसंघ ने दिल्ली नगर निगम में 1957 में पहली जीत दर्ज करके अपनी राजनीति की शुरुआत की थी लेकिन जहाँ से शुरुआत हुई, वहीं बीजेपी चाहकर भी सत्ता हासिल नहीं कर पा रही है।
दिल्ली: पाँच चुनाव हारी, मोदी लहर भी नहीं बचा सकी, अब क्या तीर मारेगी बीजेपी?
- दिल्ली
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- 14 Jan, 2020

दिल्ली में बीजेपी पिछले पाँच चुनावों से लगातार हार रही है। उस दौर में भी हारी जब 2015 में मोदी लहर थी। क्या गुटबाज़ी कारण रही है?
बीजेपी 1993 में विधानसभा का पहला चुनाव जीतकर सत्ता में आई थी लेकिन 1998 में पासा पूरी तरह बदल गया। 1998 के विधानसभा चुनाव दिल्ली बीजेपी के लिए एक दुखद अध्याय कहा जा सकता है। चुनाव से क़रीब एक महीना पहले बीजेपी ने मुख्यमंत्री बदल दिया। साहिब सिंह वर्मा को हटाकर सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बनाकर भेज दिया गया। दरअसल, उस दौरान बीजेपी ने पाँच साल के एक कार्यकाल में दिल्ली को तीन मुख्यमंत्री दिए और हालात किसी के भी काबू में नहीं रहे।
1993 का चुनाव जीतने के बाद मदन लाल खुराना को मुख्यमंत्री बनाया गया था। 1995 में देश की राजनीति में हवाला का भूचाल उठा। जैन बंधुओं की डायरी में अनेक नाम आए। इसमें मदन लाल खुराना का नाम भी शामिल था। खुराना ने नैतिकता के आधार पर यह कहते हुए इस्तीफ़ा दे दिया कि जब अदालत मुझे दोषमुक्त कर देगी तो मैं वापस मुख्यमंत्री बन जाऊँगा। बीजेपी ने उनके उत्तराधिकारी के रूप में साहिब सिंह वर्मा को चुना। चुनाव से छह महीने पहले दिल्ली में बिजली संकट गहरा गया। प्याज की क़ीमतें बढ़ने लगीं। कांग्रेस ने स्थिति का भरपूर लाभ उठाया। हालात हाथ से निकलते देख अंतिम दौर में बीजेपी ने बौखलाकर साहिब सिंह वर्मा की जगह सुषमा स्वराज को बिठा दिया। हालाँकि तब तक खुराना भी अदालत से दोषमुक्त हो गए थे लेकिन पार्टी ने उन्हें मौक़ा नहीं दिया। गुटबाज़ी बढ़ने के डर से बीजेपी ने तीसरे को सत्ता पर बिठा दिया। खुराना और वर्मा दोनों ही नाराज़ थे और सुषमा स्वराज एकदम नई थीं।