दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए पर्चे दाख़िल करने में अब सिर्फ दो दिन बाक़ी रह गए हैं। इस मामले में आम आदमी पार्टी (आप), कांग्रेस और बीजेपी से आगे रही है क्योंकि उसने नामांकन शुरू होते ही अपने उम्मीदवारों का एलान कर दिया। बीजेपी और कांग्रेस अभी भी कुछ सीटों पर उम्मीदवारों को चुनने के लिए माथापच्ची कर रही हैं और ‘आप’ के ज्यादातर उम्मीदवारों ने रोड शो निकालकर पर्चे दाख़िल कर दिए हैं और प्रचार शुरू कर दिया है।
2015 के विधानसभा चुनाव में भी ‘आप’ ने यही गुर अपनाया था जिसका उसे फायदा भी मिला था। ‘आप’ की इस रणनीति की बीजेपी और कांग्रेस नकल नहीं कर पाईं और एक तरह से उसने अपने उम्मीदवारों को प्रचार का कम मौक़ा दिया। वह भी तब जब पिछले चुनाव में बीजेपी का लगभग पूरी तरह सफाया हो गया था और कांग्रेस शून्य से आगे नहीं बढ़ सकी थी। ऐसे में उन्हें पहले से ही पूरी तरह तैयार रहने की ज़रूरत थी लेकिन जाहिर है कि कांग्रेस और बीजेपी चुनाव की तैयारी में ‘आप’ से पीछे नजर आ रही हैं।
शनिवार रात तक बीजेपी 57 और कांग्रेस 54 सीटों पर अपने उम्मीदवार फ़ाइनल कर सकी हैं लेकिन नई दिल्ली की सीट छोड़ दें तो बाक़ी सीटों पर दोनों ही पार्टियों ने अपने बड़े चेहरों को उतार दिया है। अभी इन दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों को नामांकन पत्र दाख़िल करने हैं और इसके लिए उनके पास सिर्फ़ दो ही दिन बचे हैं। अगर शेष उम्मीदवारों का नाम सोमवार तक फ़ाइनल नहीं हुआ तो फिर वे हमेशा की तरह आख़िरी समय तक नामांकन के लिए भागते नजर आएंगे।
‘आप’ में विरोध की गुंजाइश नहीं
जहां तक ‘आप’ का सवाल है तो केजरीवाल ने 70 उम्मीदवार तो घोषित कर दिए लेकिन साथ ही यह संदेश भी दे दिया कि पार्टी में सिर्फ उनका ही वर्चस्व है और वह जो चाहते हैं, वही होता है। पार्टी में विरोध या असहमति की कोई गुंजाइश ही नहीं है। इसीलिए पार्टी के 15 वर्तमान विधायकों का टिकट काट दिया गया। इनमें वे विधायक भी शामिल हैं जिनका गुणगान खुद केजरीवाल करते रहे हैं जैसे कैंट सीट से विधायक कमांडो सुरेंद्र सिंह। इसी तरह हरिनगर से जगदीप सिंह हों या फिर कालकाजी से अवतार सिंह, इन विधायकों का टिकट किस आधार पर काटा गया, यह किसी को पता नहीं है।
यह दावा किया गया कि ‘आप’ के इन विधायकों का टिकट इसलिए काटा गया है कि इंटरनल सर्वे में इनकी रिपोर्ट ठीक नहीं आई थी लेकिन उस सर्वे के नतीजे किसी को बताने की ज़रूरत नहीं समझी गई और न ही किसी की हिम्मत हुई कि वे सर्वे के बारे में पूछ सकें।
कैसे बिगड़ गई सर्वे रिपोर्ट?
यह भी हैरानी की बात है कि लगभग अंतिम समय में जब दूसरी पार्टियों के बड़े नेता ‘आप’ में शामिल हुए तो फिर इन्हीं नेताओं के इलाक़ों से ही विधायकों की सर्वे रिपोर्ट कैसे बिगड़ गई। मसलन, कांग्रेस के पूर्व सांसद महाबल मिश्रा के बेटे विनय शर्मा के ‘आप’ में शामिल होते ही पालम से विधायक आदर्श शास्त्री की रिपोर्ट कैसे ख़राब हो गई जबकि इससे पहले वह पार्टी के लिए एक एसेट माने जाते थे। इसी तरह बदरपुर से रामसिंह नेताजी के शामिल होते ही एन.डी. शर्मा की रिपोर्ट कैसे बिगड़ गई या फिर लोकसभा चुनावों में हारे उम्मीदवारों राघव चड्ढा, आतिशी और दिलीप पांडे को चुनाव मैदान में उतारने के लिए सर्वे में राजेंद्र नगर, कालकाजी और तिमारपुर विधानसभा सीटों की रिपोर्ट को ख़राब करना पड़ा।
अगर टिकट वितरण पर केजरीवाल की नीति और नीयत की बात करें तो उन्होंने ख़ासतौर पर कांग्रेस को कमजोर करने के लिए उसके पूर्व विधायकों को पार्टी में शामिल करने की भरपूर कोशिश की और उन्हें टिकट भी थमाया।
‘सफाई’ करने आए थे केजरीवाल?
केजरीवाल ने इस बात का बिलकुल गुरेज नहीं किया कि वह इससे पहले यह दावा करते रहे हैं कि वह राजनीति में ‘सफाई’ करने आए हैं। उनके इस व्यवहार से राजनीति के हमाम में सभी के नंगे होने वाली बात सही साबित होती है। मसलन, मटिया महल से पूर्व विधायक शुएब इक़बाल के ख़िलाफ़ ‘आप’ खुद गंभीर आरोप लगाती रही है। इसी तरह सीलमपुर से हाजी इशराक का टिकट काटकर अब्दुल रहमान को उम्मीदवार बनाते हुए या फिर धनवंती चंदीला को राजौरी गार्डन से उम्मीदवार बनाते हुए पार्टी ने इनकी छवि या दागी चेहरों की कोई परवाह नहीं की। राजकुमारी ढिल्लों या दीपू चौधरी भी ऐसे नाम हैं जिन्हें कांग्रेस छोड़े अभी 24 घंटे भी नहीं बीते थे कि वे ‘आप’ के उम्मीदवार बन गए।
हालांकि अरविंद केजरीवाल ने यह विश्वास जाहिर किया था कि जिन विधायकों का टिकट कटा है, वे नेता उनका साथ नहीं छोड़ेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जिनके टिकट काटे गए हैं, स्वाभाविक रूप से उन्होंने केजरीवाल पर कई गंभीर आरोप लगाए। ऐसे आरोप कपिल मिश्रा, अलका लांबा और अनिल वाजपेयी जैसे पुराने विधायक भी लगा चुके हैं। एन.डी. शर्मा, हाजी इशराक, आदर्श शास्त्री, जगदीप सिंह पार्टी छोड़ चुके हैं और बाक़ी कई विधायक भी इसी लाइन में हैं। मगर, केजरीवाल को इसकी परवाह नहीं है। उन्होंने कभी साथ छोड़ने वालों को मनाने की या फिर उनकी शिकायतों पर गौर करने की ज़रूरत नहीं समझी।
जोख़िम लेने से पीछे हटी बीजेपी
दूसरी ओर, बीजेपी ने पहली खेप में 57 उम्मीदवारों के ही नाम घोषित किए यानी सारी सीटों पर वह भी फ़ैसला नहीं कर पाई। इससे पता चलता है कि पार्टी के अंदर कितनी गुटबाज़ी है। पार्टी आख़िरी लम्हों तक शिरोमणि अकाली दल के साथ समझौते को भी अंतिम रूप नहीं दे पाई और न ही यह तय कर पाई कि आख़िर अरविंद केजरीवाल के ख़िलाफ़ नई दिल्ली में वह किसे अपना उम्मीदवार बनाएगी। पार्टी ने 57 में से 42 सीटों पर उन उम्मीदवारों को ही उतारा जो पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं। जाहिर है कि स्थापित नामों की जगह वे किसी नए नाम को लाकर रिस्क लेने से बचे हैं। हालांकि इसमें बीजेपी का दोष नहीं है क्योंकि यह विधानसभा चुनाव उसके लिए जीवन-मरण का सवाल है।
मौजूदा दौर में जब बीजेपी का ग्राफ़ तेजी से घटता नजर आ रहा है, ऐसे में दिल्ली जीतना उसके लिए बेहद ज़रूरी है। लेकिन वह जीतेगी कैसे, यह अभी तक साफ़ नहीं हुआ है।
उम्रदराज नेताओं को उतारना मजबूरी
हालांकि बीजेपी ने अपनी लिस्ट में 27 सीटों पर नए उम्मीदवारों को उतारा है लेकिन उनमें भी युवाओं की बजाय 60 साल की उम्र से ज्यादा के नेता ही हैं। मास्टर आज़ाद सिंह, सुभाष सचदेवा, नरेश गौड़, रामबीर सिंह बिधूड़ी, जगदीश प्रधान, मोहन सिंह बिष्ट, सुरेंद्र सिंह बिट्टू, अजीत खड़खड़ी, सतप्रकाश राणा, ब्रह्म सिंह तंवर, ओपी शर्मा ऐसे नाम हैं जिनकी बीजेपी अनदेखी नहीं कर सकी।
नगर निगम के पिछले चुनाव में सारे उम्मीदवार बदलने का बीजेपी ने जो जोख़िम उठाया था, वैसा वह विधानसभा चुनाव में नहीं उठा सकी।
हालांकि मनीष सिसोदिया ने इसे बिना दूल्हे वाली बारात कहा है लेकिन बीजेपी के पास कोई और विकल्प भी नहीं है। बीजेपी की लिस्ट में कांग्रेस छोड़कर आए पूर्व विधायक भीष्म शर्मा का नाम नहीं है जबकि दूसरे बड़े नेता राजकुमार चौहान को शायद पहले ही आभास हो गया था कि उन्हें टिकट नहीं मिल रहा है और वह आख़िरी लम्हों में वापस कांग्रेस में चले गए। यह बात हैरान करने वाली है कि कांग्रेस ने मंगोलपुरी से उन्हें टिकट नहीं दिया है। हालांकि यह भी साफ़ नहीं है कि कांग्रेस की पतली हालत के कारण कहीं उन्होंने भी चुनाव लड़ने से इनकार तो नहीं कर दिया।
सोनिया के निर्देश पर भी नहीं लड़ा चुनाव
कांग्रेस की 54 उम्मीदवारों की लिस्ट में कई बड़े नाम हैं लेकिन ये नाम तब शामिल हुए हैं जब सोनिया गाँधी ने यह निर्देश जारी कर दिया कि कोई भी बड़ा नेता चुनाव लड़ने से इनकार नहीं करेगा। कांग्रेस ने पिछले दो विधानसभा चुनाव में जैसा प्रदर्शन किया है, उसे देखते हुए टिकट लेना भी स्थापित नेताओं के लिए चुनौती है। सोनिया के निर्देश के बाद भी कांग्रेस की लिस्ट में अजय माकन, ख़ुद प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा, ऑल इंडिया कांग्रेस के सचिव नसीब सिंह और पूर्व सांसद महाबल मिश्रा वग़ैरह का नाम नहीं है।
हां, कई बड़े नेता चुनाव लड़ने की हिम्मत भी दिखा रहे हैं। इनमें पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरविंद सिंह लवली, पूर्व मंत्री अशोक वालिया, शीला दीक्षित की प्रदेश टीम में रहे तीनों कार्यकारी अध्यक्ष हारून यूसुफ़, देवेंद्र यादव और राजेश लिलोठिया शामिल हैं। सीलमपुर से पांच बार के विधायक मतीन अहमद और जंगपुरा से तरविंदर सिंह मारवाह भी बड़ा नाम हैं।
कांग्रेस ने 10 महिलाओं को भी टिकट दिया है जो ‘आप’ तथा बीजेपी दोनों से ज़्यादा है। इनमें चांदनी चौक से अलका लांबा भी शामिल हैं। आदर्श शास्त्री को भी पार्टी में शामिल होते ही पालम से टिकट मिल गया।
कांग्रेस भी नई दिल्ली सीट पर अरविंद केजरीवाल के ख़िलाफ़ कौन लड़ेगा, इसका फ़ैसला अब तक नहीं कर पाई है। वैसे कांग्रेस ने कई युवाओं को टिकट दिया है जिनमें पार्टी की मीडिया पैनलिस्ट राधिका खेड़ा जनकपुरी से, युवा पार्षद अभिषेक दत्त कस्तूरबा नगर से, पूर्व डूसू अध्यक्ष नीतू वर्मा मालवीय नगर से, पूर्व विधायक कुंवर करण सिंह की बेटी आकांक्षा ओला मॉडल टाउन से और पूर्व विधायक हसन अहमद के बेटे अली मेहंदी मुस्तफ़ाबाद से शामिल हैं।
तीनों ही पार्टियां अब मैदान पर अपनी बिसात बिछा चुकी हैं। ‘आप’ आक्रामक और विश्वास से लबरेज नजर आती है तो बीजेपी बदला लेने के लिए छटपटाती दिखाई देती है। कांग्रेस के लिए वजूद की लड़ाई है और वह हरियाणा जैसे चमत्कार की उम्मीद में है। किसे कितनी सीटें मिलती हैं, यह 11 फरवरी को सबके सामने आ जाएगा।
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