छत्तीसगढ़ में एग्ज़िट पोल में कांग्रेस को अपना पलड़ा भारी नज़र आने के बाद पार्टी के भीतर मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर जंग छिड़ गई है। रायपुर से लेकर दिल्ली तक आधा दर्जन नेता अपनी क़िस्मत आज़माने के लिए जीतोड़ कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गाँधी के जन्मदिन के मौक़े पर उन्हें बधाई देने के लिए छत्तीसगढ़ के आधा दर्जन ‘सीएम इन वेटिंग’ नेताओं ने दिल्ली में डेरा डाला हुआ है। आलाकमान के सामने ये तमाम नेता एक तरह से शक्ति परीक्षण कर अपना लोहा मनवाने में जुटे हैं। सारे नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी से अलग-अलग मिलने के लिए समय माँगा है।
मुख्यमंत्री पद को लेकर नेताओं में मची होड़ के बीच वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मोतीलाल वोरा का भी नाम सामने आया है। हालाँकि मोतीलाल वोरा ने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा। उनके विधायक पुत्र अरुण वोरा को पार्टी ने दुर्ग विधानसभा सीट से दुबारा मैदान में उतारा है। अरुण वोरा की जीत तय मानी जा रही है। यह भी चर्चा है कि यदि मोतीलाल वोरा को मुख्यमंत्री बनाया गया तो उनके पुत्र अरुण वोरा सीट खाली कर सकते हैं। चुनावी सर्वेक्षण में अरुण वोरा अच्छे-ख़ासे मतों से जीत दर्ज़ करते नज़र आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ में चुनावी सर्वेक्षणों में जीत रही कांग्रेस ने विवाद से बचने के लिए एक सर्वमान्य नेता की खोज शुरू की है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक़ इस फ़ॉर्मूले में ‘बाबूजी’ यानी मोतीलाल वोरा पूरी तरह से फ़िट बैठ रहे हैं। यह भी बताया जा रहा है कि लोकसभा चुनाव तक वे मुख्यमंत्री की कुर्सी को सँभालेंगे। इसके बाद किसी नए दावेदार की लॉटरी खुल सकती है।
वोरा के अलावा छह और प्रबल दावेदार
उधर मुख्यमंत्री के अन्य दावेदारों में अव्वल नंबर पर टी.एस. सिंहदेव और सांसद ताम्रध्वज साहू का नाम है। तीसरे और चौथे नंबर पर क्रमशः कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल और पूर्व केंद्रीय मंत्री चरणदास महंत का नाम सामने आ रहा है। कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष और अनुसूचित जाति वर्ग के नेता डॉ. शिव डहरिया और अनुसूचित जनजाति वर्ग से अमरजीत भगत का भी नाम सुर्ख़ियों में है। आदिवासी मुख्यमंत्री की माँग छत्तीसगढ़ के गठन के बाद से ही शुरू हो गई थी। इस माँग को तवज्जो देते हुए कांग्रेस ने वर्ष 2001 में अजित जोगी को बतौर आदिवासी मुख्यमंत्री राज्य की कमान सौंपी थी हालाँकि बाद में उनपर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के नेताओं ने फर्ज़ी आदिवासी होने का आरोप लगाया था। आज भी यह मामला अदालत में विचाराधीन है। अब तक अंतिम फ़ैसला नहीं हो पाया है कि अजीत जोगी वाक़ई आदिवासी हैं या ग़ैर-आदिवासी। जोगी अब कांग्रेस से बाहर होकर अपनी पार्टी जनता कांग्रेस का गठन कर ख़ुद के किंग मेकर होने का बिगुल फूँक रहे हैं।
किसका दावा कितना दमदार?
कांग्रेस के आधा दर्ज़न ‘सीएम-इन-वेटिंग’ दावेदारों के दमख़म का आकलन किया जाए तो टी.एस. सिंहदेव नेता प्रतिपक्ष रह चुके हैं और इस विधानसभा चुनाव में पार्टी के घोषणा-पत्र को तैयार करने से लेकर चुनावी सभाओं को संचालित करने की जवाबदेही उन्होंने बख़ूबी उठाई थी जबकि कांग्रेस ने राज्य में एकमात्र सांसद और ओबीसी लीडर ताम्रध्वज साहू को चुनावी मैदान में उतार कर साहू समुदाय के एक बड़े वर्ग को अपने पक्ष में एकजुट करने की कोशिश की थी। पार्टी ने 8 साहू उम्मीदवारों को टिकट दे कर समाज में यह सन्देश भी दिया था कि सांसद ताम्रध्वज साहू राज्य के अगले सीएम मटीरियल हैं।
पूरे पाँच साल तक बीजेपी पर हमलावर रहे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल को भी मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जा रहा है। उन्होंने बीजेपी और मुख्यमंत्री रमन सिंह पर कई बार तीखा हमला कर कांग्रेस में नयी जान फूँकी थी।
कांग्रेस के स्थानीय से लेकर बड़े नेता इस बात को स्वीकार करते हैं कि भूपेश बघेल एकमात्र ऐसे नेता हैं जो पूरे पाँच साल राज्य की बीजेपी सरकार और उसके अफ़सरों के निशाने पर रहे। उन्हें क़ानूनी दाँव-पेच और आपराधिक मामलों में फँसाने के लिए राज्य सरकार ने कोई कसर बाक़ी नहीं छोड़ी। भूपेश बघेल को लेकर पार्टी के नेता यह भी दलील दे रहे हैं कि सही मायनों में उन्होंने शहरों से लेकर गाँव तक कांग्रेसियों को सक्रिय किया और बीजेपी के ख़िलाफ़ बड़े आंदोलन खड़े करने में कामयाब रहे।
फ़िलहाल कांग्रेस में ‘कौन बनेगा मुख्यमंत्री’ को लेकर मंथन का दौर जारी है। कांग्रेस के बड़े नेता आसानी से किसी भी उम्मीदवार के सिर पर अपना हाथ रखने से बच रहे हैं। उन्हें इस बात का अंदेशा है कि मुख्यमंत्री चयन को लेकर फैला कोई भी असंतोष लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी पर भारी पड़ सकता है।
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